राहों के रंग न जी सके कोई ज़िंदगी नहीं|
यूहीं चलते जाना दोस्त कोई ज़िंदगी नहीं |
कुछ पल तो रुक के देख ले,क्या क्या है राह में ,
यूही राह चलते जाना, कोई ज़िंदगी नहीं।
चलने का कुछ तो अर्थ हो कोई मुकाम हो,
चलने के लिए चलना कोई ज़िंदगी नहीं।
कुछ ख़ूबसूरत से पड़ाव, यदि राह में न हों ,
उस राह चलते जाना, कोई ज़िंदगी नहीं ।
ज़िंदा दिली से ज़िंदगी को जीना चाहिए,
तय रोते सफ़र करना कोई ज़िंदगी नहीं।
इस दौरे भागम भाग में सिज़दे में इश्क के,
कुछ पल झुके तो इससे बढ़कर बंदगी नहीं।
कुछ पल ठहर हर मोड़ पर खुशियाँ तू ढूढ़ ले,
उन पल से बढ़कर 'श्याम कोइ ज़िंदगी नहीं ॥
4 comments:
बहुत ही खूबसूरत गजल ।
अच्छी गज़ल हिअ यह श्याम जी की
behatreen gazal.....vaah.....!!
bahut khub bahut hi sundar
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