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गुरुवार, 25 मार्च 2010

सीख मिल गई - (लोककथा)

किसी गरीब आदमी का अपने गाँव के एक बड़े धनी आदमी से झगड़ा हो गया। उस अमीर आदमी ने गरीब को बहुत ही ज्यादा परेशान कर रखा था। गरीब आदमी को लोकतन्त्र पर बहुत विश्वास था। इसी विश्वास के आधार पर गरीब आदमी ने अदालत के सामने गुहार लगाई।

इसका परिणाम यह हुआ कि धनी आदमी के ऊपर मुकदमा चालू हो गया। गरीब और अमीर दोनों को समय-समय पर अदालत में हाजिर होना पड़ता था। चूँकि गरीब आदमी के पास इतना धन नहीं था कि वह कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा सकता। उसको इसे बहुत ही निराशा हुई। उसे लगा कि धनी आदमी अपने धन के बल पर लगातार उसको परेशान करवा रहा है।

नियमतः फिर एक दिन अदालत में जाने का समय आया। इसी निराशा का भाव लेकर और मन में एक धारणा बनाकर कि समाज में हमेशा धनिकों का ही बोलबाला रहता है, वह गरीब आदमी कचहरी के लिए चल पड़ा। उसके मन में यह धारणा घर कर गई थी कि उसे मुकदमा हारना ही है। धनी आदमी ने अपने धन की ताकत से अदालत के लोगों को भी खरीद लिया होगा।

रास्ते में एक स्थान पर उस गरीब ने आराम करने का विचार किया। वह आराम करने के लिए खेत में सही जगह खोजने लगा। तभी उसने देखा कि उस खेत में तरबूज लगे हैं और उनकी बेल बहुत ही कमजोर है। आसपा सही जगह देखकर वह एक बरगद के पेड़ के नीचे आकर लेट गया। उसने देखा कि बरगद के पेड़ पर छोटे-छोटे गूलर लटके हैं।

तरबूज और गूलर देखकर उस गरीब के मन में तुरन्त ही एक भाव आया कि अन्याय इस समाज में ही नहीं होता आ रहा है। अन्याय तो स्वयं भगवान भी करता रहा है। मरियल सी कमजोर बेल, जो स्वयं बिना सहारे के खड़े नहीं हो सकती है, धरती पर पड़ी है उसमें इतना बड़ा फल लगा दिया और बरगद जो इतना विशाल है, सभी को छाया भी देता है, जिसके हजारों शाखायें हैं, उसे जरा-जरा से गूलर के फल दिये।

ऐसा भाव आते ही गरीब को लगा कि जब भगवान ही अन्याय कर सकता है तो हमारे साथ भी यदि धनी आदमी अन्याय कर रहा है, अदालत अन्याय कर रही है तो बुरा नहीं है।

अभी वह गरीब आदमी इतना सोच ही रहा था कि अचानक बरगद से उसका फल गूलर टूट कर उस गरीब आदमी के मुँह पर गिरा। आदमी एकाएक उठ बैठा और बोला कि नहीं भगवान ने सभी का एक नियम बनाया है। उसी नियम के कारण किसी को बड़ा फल और किसी को छोटा फल मिला है। यदि बरगद में गूलर जैसे छोटे फल की जगह पर तरबूज जैसा विशाल फल लगा होता तो वह उसके मुँह पर गिरने से आज मर ही गया होता।

प्रत्येक कार्य के नियमतः होने का कारण जानकर उस गरीब आदमी को संतुष्टि हुई। उसे समझ में आया कि अदालत का कार्य अपने अनुसार चल रहा है और जब सही समय आयेगा उसे न्याय मिल जायेगा।

4 comments:

Udan Tashtari ने कहा…

कम से कम निर्णय आने तक विश्वास कायम रहे तो तसल्ली!!

Atul Shrivastava ने कहा…

ऊपरवाले ने सबको समान अधिकार दिए हैं। सबको उसकी जरूरत के सामान दिए हैं और इस समानता के साथ दिए हैं कि उसका दूसरे पर प्रभाव भी अनुकूल ही पडे।
वो तो हम हैं जो दुनियादारी के चक्‍कर में ऊपर वाले के दिए को गलत समझ बैठते हैं। लेकिन जब वक्‍त आता है तो समझ आता है कि ऊपर वाले ने किसी के साथ भेद नहीं किया।
अच्‍छी रचना।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अच्छी लघुकथा ...विश्वास कायम रहना चाहिए

बेनामी ने कहा…

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