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मंगलवार, 9 मार्च 2010

नारी सब जग तेरी छाया ---------[पद ]------डाo श्याम गुप्त

नारी सब जग तेरी छाया |
सारे जग का प्रेम औ ममता तेरे मन ही समाया |
तेरी प्रीति की रीति ही तो है जग की छाया माया |
ममता रूपी माँ के पग -तल सारा जगत सुहाया |
प्रेम की सुन्दर नीति बनी तो जग में प्यार बसाया |
भगिनी ,पुत्री विविध रूप बन, जग संसार रचाया |
आदि- शक्ति,सरस्वति, गौरी, लक्ष्मी रूप सजाया |
राधा बन कान्हा को नचाये,, सारा जगत नचाया |
श्याम' कामिनी सखी प्रिया प्रेयसि बन मन भरमाया ||

2 comments:

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

बिल्कुल सही लिखा है श्याम जी आपने , आभार ।

बेनामी ने कहा…

"सारा जगत नचाया"?