मुश्किलें आती रही, हादिसे बढ़ते गये ।मंज़ि़लों की राह में, क़ाफ़िले बढ़ते गये ।दरमियाँ थी दूरियाँ, दिल मगर नज़दीक़ थेपास ज्यूँ-ज्यूँ आये हम, फ़ासले बढ़ते गये ।राहरवों का होंसला, टूटता देखा नहींग़रचे दौराने-सफ़र, हादिसे बढ़ते गये ।साथ रह कर भी बहम हो न पाई ग़ुफ़्तग़ूख़ामशी के दम ब दम, सिलसिले बढ़ते गये ।हम थे मंज़िल के क़रीब, और सफ़र आसान थायक-ब-यक तूफ़ां उठा, वस्वसे बढ़ते गये ।किस्सा-ए-ग़म से मेरे कुछ न आँच आई कभीमेरे दुख और उनके 'पुरु' क़हक़हे बढ़ते गये ।
बुधवार, 10 मार्च 2010
मुश्किलें आती रही------[गजल]------- पुरु मालव
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7 comments:
बहुत ही बेहतरीन गजल , बधाई ।
दरमियाँ थी दूरियाँ, दिल मगर नज़दीक़ थे
पास ज्यूँ-ज्यूँ आये हम, फ़ासले बढ़ते गये ।
वाह बहुत खूब। बहुत अच्छी लगी गज़ल पुरू मालव जी को बधाई
बहुत खूब
वाह वाह - बहुत खूब
दरमियाँ थी दूरियाँ, दिल मगर नज़दीक़ थे
पास ज्यूँ-ज्यूँ आये हम, फ़ासले बढ़ते गये ।
ye sher behad pasand aaya
हम थे मंज़िल के क़रीब, और सफ़र आसान था
यक-ब-यक तूफ़ां उठा, वस्वसे बढ़ते गये
बहुत बढ़िया
पसंद आई
बहुत ही उम्दा प्रस्तुति रही । आभार
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