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शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

मैं बेफिक्र होकर सोया हुआ था-------[कविता]-------हिमांशु वाजपेयी

मैं बेफिक्र होकर सोया हुआ था


तेरे नर्म ख्वाबों में खोया हुआ था


खुदा जाने फ़िर क्या ज़रूरत हुई


बिना कुछ कहे तू जो रुखसत हुई


मुझे लग रहा था के लौट आएगी


इस तरह तू क्यों चली जायेगी


मैं पूरा यकीं तुझपे रखता रहा


मुसलसल तेरी राह तकता रहा


अपने मुकद्दर से दम भर लड़ा


अब तक उसी मोड़ पर हूँ खड़ा


दिल में अगर प्यार बाकी रहे


फिर चली आना बिना कुछ कहे

4 comments:

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

दिल से निकले शब्द अच्छे लगे , आभार ।

जय हिन्दू जय भारत ने कहा…

भईया मेरे क्या बात है , इतना भी मत डुब जाईये कि खूद को ही भुल जाईये ।

Unknown ने कहा…

मुसलसल तेरी राह तकता रहा
अपने मुकद्दर से दम भर लड़ा
अब तक उसी मोड़ पर हूँ खड़ा
दिल में अगर प्यार बाकी रहे
फिर चली आना बिना कुछ कहे

बहुत खूब शब्दो के सजाया है आपने ।

vandana gupta ने कहा…

bahut hi meethi pukar------------seedhe dil mein utar gayi.