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मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

एक नन्हीं किरण------[कविता]----------सीमा सिंघल 'सदा'

दर्द आज


बयां करना चाहता था


अपनी पीड़ा को


जो उसे असहाय कर चली थी


जब से वह


उसके भीतर पली थी


चिंता के साथ


घुल रही थी उसकी हड्डियां भीं


उसके रोम छिद्र


सिहर उठते उसकी चुभन से


आंसुओ के वेग में


निशब्‍द मौन खड़ा वह


होठों को भींचकर


देखता उसकी जड़ता को


हठीली मुस्‍कान पपड़ाये हुये होठों पर


सफेद धारियों में


रक्‍त की लालिमा लाकर


उसे मन ही मन कुंठित करती


आज पूरे वेग से


वह झटकना चाहता था


गुजरना चाहता था हद के परे


हताशा और निराशा के


पकड़ना चाहता था


आस की एक नन्‍हीं किरण


जो इस दर्द का अंत कर सकती थी


8 comments:

निर्मला कपिला ने कहा…

आस की एक नन्‍हीं किरण


जो इस दर्द का अंत कर सकती थी


बहुत गहरे भाव लिये इस कविता के लिये धन्यवाद

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आशा की किरण ही हताशा को दूर कर सकती है....सुन्दर अभिव्यक्ति

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति लगी ।

जय हिन्दू जय भारत ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन कविता लगी , बधाई ।

vandana gupta ने कहा…

bahut gahre bhav.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

शब्दों का धमाल!
आपकी लेखनी का कमाल!
बधाई!

Unknown ने कहा…

bahut khub