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सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

अच्छा लगता है--------[कविता ]------निर्मला कपिला

कभी कभी
क्यों रीता सा
हो जाता है मन
उदास सूना सा
बेचैन अनमना सा
अमावस के चाँद सी
धुँधला जाती रूह
सब के होते भी
किसी के ना होने का आभास
अजीब सी घुटन सन्नाटा
जब कुछ नहीं लुभाता
तब अच्छा लगता है
कुछ निर्जीव चीज़ों से बतियाना
अच्छा लगता है
आँसूओं से रिश्ता बनाना
बिस्तर की सलवटों मे
दिल के चिथडों को छुपाना
और
बहुत अच्छा लगता है
खुद का खुद के पास
लौट आना
मेरे ये आँसू मेरा ये बिस्तर
मेरी कलम और ये कागज़
और
मूक रेत के कणों जैसे
कुछ शब्द
पलको़ से ले कर
दो बूँद स्याही
बिखर जाते हैँ
कागज़ की सूनी पगडंडियों पर
मेरा साथ निभाने
हाँ कितना अच्छा लगता है
कभी खुद का
खुद के पास लौट आना

17 comments:

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

जब भी मन उदास होता है तो हम अक्सर कलम और चन्द पन्ने पर उस लम्हे को उकेर देते हैं । बेहतरीन कविता के लिए आभार

जय हिन्दू जय भारत ने कहा…

बहुत खूब निर्मला जी , आपकी ये रचना दिल को छू गयी , बहुत-बहुत बधाई आपको ।

Unknown ने कहा…

मूक रेत के कणों जैसे
कुछ शब्द
पलको़ से ले कर
दो बूँद स्याही
बिखर जाते हैँ
कागज़ की सूनी पगडंडियों पर
मेरा साथ निभाने
हाँ कितना अच्छा लगता है
कभी खुद का
खुद के पास लौट आना

सच में माँ जी आपने शब्दो को मनोव्यथा का बखूबी रुप दिया है , लाजवाब लगी आपकी कविता ।

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छा लगता है
खुद का खुद के पास
लौट आना
दीदी ये पंक्तिया गागर में सागर के समान हैं। अब इसके आगे क्या कहूँ, कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है ।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

एकदम सहमत खुद के पास लौटना वास्तव में ही बहुत अनुभूत करने वाला विचार है. सुंदर रचना के लिए बधाई.

रंजू भाटिया ने कहा…

हाँ कितना अच्छा लगता है
कभी खुद का
खुद के पास लौट आना बहुत बढ़िया लिखा है आपने निर्मला जी ..बेहतरीन लगी आपकी यह रचना शुक्रिया

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मूक रेत के कणों जैसे
कुछ शब्द
पलको़ से ले कर
दो बूँद स्याही
बिखर जाते हैँ
कागज़ की सूनी पगडंडियों पर

एहसासों को बखूबी उकेरा है....सुन्दर रचना...इस अकेलेपन में जो अच्छा लगता है कितना दर्द है...

aarkay ने कहा…

एक एक शब्द , एहसासों से भरा हुआ .मन को छु गई आपकी यह सुंदर कविता !

निर्मला कपिला ने कहा…

ांअरे वाह ये कविता यहाँ भी पहुँच गयी ? ये तो बहुत पहले भेजी थी। बहुत बहुत धन्यवाद इसे छापने के लिये। और पाठकों का इसे पढने और सराहने के लिये।

M VERMA ने कहा…

हाँ कितना अच्छा लगता है
कभी खुद का
खुद के पास लौट आना
बहुत सुन्दर

रानीविशाल ने कहा…

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ...सीधी दिल की गहराइयों में उतर जाती है !
आभार

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

निर्मला जी ..बेहतरीन लगी आपकी यह रचना शुक्रिया

shikha varshney ने कहा…

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति

KSS Kanhaiya (के एस एस कन्हैया) ने कहा…

रचना बहुत अच्छी लगी. बधाई.

vandana gupta ने कहा…

manahsthiti ka khoobsoorat chitran.

डा श्याम गुप्त ने कहा…

बहुत्त सुन्दर अभिव्यक्ति--

मन के सुख-दुख अनुबन्धों की
कथा सुहानी है ।

बेनामी ने कहा…

Ati sundar!!
Vicharoon ki abhivyakti hai!