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शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

उर्मिला की विरह वेदना--------[गीत]--------वंदना गुप्ता

१) प्रियतम हे प्राणप्यारे
विदाई की अन्तिम बेला में
दरस को नैना तरस रहे हैं
ज्यों चंदा को चकोर तरसे है
आरती का थाल सजा है
प्रेम का दीपक यूँ जला है
ज्यों दीपक राग गाया गया हो


२) पावस ऋतु भी छा गई है
मेघ मल्हार गा रहे हैं
प्रियतम तुमको बुला रहे हैं
ह्रदय की किवड़िया खडका रहे हैं
विरह अगन में दहका रहे हैं
करोड़ों सूर्यों की दाहकता
ह्रदय को धधका रही है
प्रेम अगन में झुलसा रही है
देवराज बरसाएं नीर कितना ही
फिर भी ना शीतलता आ रही है

३) हे प्राणाधार
शरद ऋतु भी आ गई है
शरतचंद्र की चंचल चन्द्रकिरण भी
प्रिय वियोग में धधकती
अन्तःपुर की ज्वाला को
न हुलसा पा रही है
ह्रदय में अगन लगा रही है


४) ऋतुराज की मादकता भी छा गई है
मंद मंद बयार भी बह रही है
समीर की मोहकता भी
ना देह को भा रही है
चंपा चमेली की महक भी
प्रिय बिछोह को न सहला पा रही है


५) मेरे जीवनाधार
पतझड़ ऐसे ठहर गया है
खेत को जैसे पाला पड़ा हो
झर झर अश्रु बरस रहे हैं
जैसे शाख से पत्ते झड़ रहे हैं
उपवन सारे सूख गए हैं
पिय वियोग में डूब गए हैं
मेरी वेदना को समझ गए हैं
साथ देने को मचल गए हैं
जीवन ठूंठ सा बन गया है
हर श्रृंगार जैसे रूठ गया है

६) इंतज़ार मेरा पथरा गया है
विरहाग्नि में देह भी न जले है
क्यूंकि आत्मा तो तुम संग चले है
बिन आत्मा की देह में
वेदना का संसार पले है

७) मेरे विरह तप से नरोत्तम
पथ आलोकित होगा तुम्हारा
पोरुष को संबल मिलेगा
भात्री - सेवा को समर्पित तुम
पथ बाधा न बन पाऊँगी
अर्धांगिनी हूँ तुम्हारी
अपना फ़र्ज़ निभाउँगी
मेरी ओर न निहारना कभी
ख्याल भी ह्रदय में न लाना कभी
इंतज़ार का दीपक हथेली पर लिए
देहरी पर बैठी मिलूंगी
प्रीत के दीपक को मैं
अश्रुओं का घृत दूंगी
दीपक मेरी आस का है ये
मेरे प्रेम और विश्वास का है ये
कभी न बुझने पायेगा
इक दिन तुमको लौटा लायेगा,लौटा लायेगा .........................

7 comments:

Mithilesh dubey ने कहा…

वंदना की क्या कहूं , निश्बद कर दिया है आपने इस रचना से । जिस तरह से आपने बिछोह की पीड़ा को शब्दो मे पीरोया है लाजवाब । इस उम्दा रचना के लिए आपको बधाई देना चाहूंगा ।

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

वंदना जी इस उत्कृष्ट रचना के लिए आभार ।

रानीविशाल ने कहा…

Virah vedana ka sundar varnan...itfaak hi hai isi vishay par aaj meri bhi ek rachana prakashit hui hai shayad aapko pasand aae....
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
is sundar prastuti ke liye bahut bahut dhanywaad!

जय हिन्दू जय भारत ने कहा…

वंदना जी बेहद उम्दा व लाजवाब रचना लगी , आपने उर्मिला की विरह वेदना को बखूबी चित्रित किया है। बधाई

कविता रावत ने कहा…

Naari vedana ki sundar prastuti...
Bahut badhai

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरती से विरह वेदना को प्रस्तुत किया है....सुन्दर कृति

Unknown ने कहा…


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