प्रिय तुमको दूं क्या उपहार |
मैं तो कवि हूँ मुझ पर क्या है ,
कविता गीतों की झंकार |
प्रिय तुमको दूं क्या उपहार |
गीत रचूँ तो तुम ये समझना,
पायल कंगना चूड़ी खन खन |
छंद कहूं तो यही समझना ,
कर्ण फूल बिछुओं की रुन झुन |
मुक्तक रूपी बिंदिया लाऊँ ,
या नगमों से होठ रचाऊँ |
ग़ज़ल कहूं तो उर में हे प्रिय !
पहनाया हीरों का हार ||---प्रिय तुमको....
दोहा, बरवै, छंद, सवैया ,
अलंकार रस छंद - विधान |
लाया तेरे अंग- अंग को,
विविधि रूप के प्रिय परिधान |
भाव ताल लय भाषा वाणी ,
अभिधा लक्षणा और व्यंजना |
तेरे प्रीति- गान कल्याणी,
तेरे रूप की प्रीति वन्दना |
नव- गीतों की बने अंगूठी ,
नव-अगीत की मेहंदी भाये |
जो घनाक्षरी सुनो तो समझो,
नक् -बेसर छलकाए प्यार |...--प्रिय तुमको....||
नज्मों की करधनी मंगा लो,
साड़ी छप्पय कुंडलियों की |
चौपाई की मुक्ता-मणि से,
प्रिय तुम अपनी मांग सजालो |
शेर, समीक्षा, मस्तक- टीका,
बाजू बंद तुकांत छंद हों |
कज़रा अलता कथा कहानी,
पद, पदफूल व हाथफूल हों |
उपन्यास केशों की वेणी,
और अगीत फूलों का हार |
मंगल सूत्र सी वाणी- वन्दना ,
काव्य-शास्त्र दूं तुझपे वार |----प्रिय तुमको ....||
सोमवार, 15 फ़रवरी 2010
कवि का वेलेंटाइन-- उपहार ----[गीत ]---डाo श्याम गुप्त का
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5 comments:
सच कहा आपनें कवि के पास तो शब्दो का ही उपहार रहता है , बहुत ही मनभावन कविता लगी आपकी , बधाई ,।
बहुत खूब लिखा है श्याम जी आपने ।
शुभ वेलेन्टाइन
waah.........bahut sundar uphar.
waah.........bahut sundar
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