प्रेम एक भावना है
समर्पण है, त्याग है
प्रेम एक संयोग है
तो वियोग भी है
किसने जाना प्रेम का मर्म
दूषित कर दिया लोगों ने
प्रेम की पवित्र भावना को
कभी उसे वासना से जोड़ा
तो कभी सिर्फ उसे पाने से
भूल गये वे कि प्यार सिर्फ
पाना ही नहीं खोना भी है
कृष्ण तो भगवान थे
पर वे भी न पा सके राधा को
फिर भी हम पूजते हैं उन्हें
पतंगा बार-बार जलता है
दीये के पास जाकर
फिर भी वो जाता है
क्योंकि प्यार
मर-मिटना भी सिखाता है !!
कृष्ण कुमार यादव
रविवार, 14 फ़रवरी 2010
प्रेम (वेलेंटाइन डे पर विशेष)
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13 comments:
पतंगा बार-बार जलता है
दीये के पास जाकर
फिर भी वो जाता है
क्योंकि प्यार
मर-मिटना भी सिखाता है !!
सुन्दर परिभाशा है प्रेम की । शुभकामनायें।
खूबसूरत अभिव्यक्तियाँ..प्यार के इस अल्हड़ मौसम में हम सब यूँ ही प्रेम का गीत गुनगुनाते रहें.
खूबसूरत अभिव्यक्तियाँ..प्यार के इस अल्हड़ मौसम में हम सब यूँ ही प्रेम का गीत गुनगुनाते रहें.
बेहद निराले अंदाज में लिखी कविता. प्रेम-दिवस पर इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए के. के. यादव जी को बधाई.
बहुत सुन्दर और सटीक रचना!
प्रेम दिवस की हार्दिक बधाई!
prem ki khoobsoorat paribhasha di hai magar aajkal ke majnoo ise kahan samajhte hain isiliye maine bhi apne blog pa rkuch likha hai ........link de rahi hun padhiyega.
http://redrose-vandana.blogspot.com
मौसम के मिजाज को देखते हुए आपने शब्दों से प्यार बिखेरा है । अच्छी भावना ।
क्या कहूं भाई जी , कविता पढ़कर आनंदित हो गया हृदय । बधाई
यादव जी , कविता का जो दृश्य आपने में प्रस्तुत किया वह बहुत ही प्यारा है । आपको बधाई इस प्रस्तुति के लिए ।
Beautiful Poem on Valentine Day...Congts.
बहुत खूब लिखा है आपने , सच में आपने प्यार को बहुत ही उम्दा संज्ञा दी है , आपकी कविता दिल को छू गयी , बधाई स्वीकार करें ।
भावनाओं का सुन्दर संगमन व प्यार का अद्भुत अहसास परिलक्षित होता है इस कविता में. के. के. यादव जी को साधुवाद.
waah.........bahut sundar
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