आशाओँ से काव्य बनाकर
तरुण अक्श को और सजाकर,
मन मेँ सजल चेतना लेकर,
मिलना मुझसे प्रेम कुँभ भर॥
भूल अगर मैँ जाता हुँ,
त्रेता की मर्यादा को,
मुझको फिर से राह दिखाना,
सदभावोँ का दिया जलाकर॥
नवविचार उदगार भरो युँ,
अविरल मँथर गति से आकर,
छा जाऊ मानस स्मृति पर,
नेक नई उपमा मैँ बन कर॥
नई कोँपले निकल रही है,
बन नव विहान श्रृँगार करो,
करुणा के बादल बन बरसो,
हर मानस ''विह्वल'' मन पर॥
मिलना मुझसे प्रेम कुँभ भर॥
रविवार, 7 फ़रवरी 2010
कविता प्रतियोगिता में सांत्वना पुरस्कार हेतु स्थान प्राप्त ----------मिलना -{कविता}--कीर्ति कुमार सिँह
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4 comments:
बहुत खूब लगी ये मनभाव कविता , बधाई आपको ।
कीर्ति कुमार जी आपको बहुत-बहुत बधाई ।
कीर्ति कुमार जी सर्वप्रथम आपको बधाई देना चाहूँगा इस कविता के लिए । कविता को पढने के बाद बहुत सुन्दर एहसास हुआ, आपने शब्दो का चयन लाजवाब ढ़ग से किया है ।
इस लाजवाब कविता के लिए बधाई ।
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