आओ पीछे लौट चलें......बहुत कुछ पाने की प्रत्याशा मेंहम घर से दूर हो गए !जाने कितनी प्रतीक्षित आँखेंदीवारों से टिकी खड़ी हैं -चलो उनकी मुरझाई आंखों की चमक लौटा दें !सूने आँगन में धमाचौकड़ी मचा दें- आओ पीछे लौट चलें...........आगे बढ़ने की चाह मेंहम रोबोट हो गएदर्द समझना,स्पर्श देना भूल गए !..............................दर्द तुम्हे भी होता है,दर्द हमें भी होता है,दर्द उन्हें भी होता है- बहुत लिया दर्द, अब पीछे लौट चलें..........पहले की तरह,रोटी मिल-बांटकर खाएँगे,एक कमरे में गद्दे बिछाइकठ्ठे सो जायेंगे ...कुछ मोहक सपने तुम देखना,कुछ हम देखेंगे -आओ पीछे लौट चलें.....................
सोमवार, 8 फ़रवरी 2010
कविता प्रतियोगिता में सांत्वना पुरस्कार हेतु स्थान प्राप्त -------आओ पीछे लौट चलें... -{कविता}--रश्मि प्रभा
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6 comments:
रश्मि जी की कविता अच्छी लगी बधाई उन्हें
purani yaadein taaza karti kavita..........badhayi rashmi ji.
रश्मि जी, आपको बधाई । कविता में आज कल की भागदौड़ और भौतिक जीवन पर अच्छा प्रयास किया है ।
रश्मि जी , मैंने आपकी कुछ रचनाएं पहले भी पढ़ी है , वाकई आप बहुत ही अच्छा लिखती है । बधाई आपको विजेता होने पर ।
बेहद सुन्दर व मार्मिक रचना लगी, रश्मि जी को बहुत-बहुत बधाई ।
रश्मि जी को बहुत-बहुत बधाई ।
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