आस-पास है बहुत अंधेरा, देखो हुआ सवेरा! सूरज छुट्टी मना रहा है, कुहरा कुल्फी जमा रहा है, गरमी ने मुँह फेरा! देखो हुआ सवेरा! भूरा-भूरा नील गगन है, गीला धरती का आँगन है, कम्बल बना बसेरा! देखो हुआ सवेरा! मूँगफली के भाव बढ़े हैं, आलू के भी दाम चढ़े हैं, सर्दी का है घेरा! देखो हुआ सवेरा!
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8 comments:
sundar prastuti.
आजकल तो सर्दी के घेरे से बाहर निकले हुए है....
पर कोहरा....अभी भी तंग कर रहा है...
अच्छी प्रस्तुति...
नवगीत अच्छा बना है.................सर्दी में एक समस्या बना हुआ है ये कुहरा ।
वाकई बहुत ही अच्छा गीत लिखा है आपने मौसम के मिजाज को देखते हुए ।
आस-पास है बहुत अंधेरा,
देखो हुआ सवेरा!
सूरज छुट्टी मना रहा है,
कुहरा कुल्फी जमा रहा है,
गरमी ने मुँह फेरा!
देखो हुआ सवेरा!
सुन्दर गीत .......................धन्यवाद।
बहुत उन्दा गीत बन पड़ा है सर्दी में ।
बहुत ही सुंदर बन पड़ी है।
सही बात है कविता को भी मँगाई मार गई :)
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