बहुत कुछ बदल जाने के बाद भी ,
आज न जाने क्यूँ तुम्हारी यादें वैसी ही हैं ,
जैसे की पहले हुआ करती थी ,
मुझे पता है कि तुमसे कह नहीं सकता कुछ भी ,
बता नहीं सकता अपनी बातों को ,
पर फिर भी खुद को ही अच्छा लगता है सोचना ये ,
जिसे तुमने आकर्षण कहा,
दोस्ती कहा
या
कभी प्यार का नाम दिया ,
उनमें से कोई रिश्ता आज कायम नहीं ।
मैं सोचता हूँ सारी पुरानी बातें ,
जिसमें केवल मैं होता था और तुम होती थी ,
जो अब झूठी लगती हैं ,
एक धोखा लगती हैं ,
ये सब सोच के दर्द सा होता
पर भी ,
ये दिल है कि तुमको ही याद करता हैं ,
खामोश रात में बंद आखें तुमको ही खोजती हैं ,
फिर दिन के उजाले में तुम कहीं गुम हो जाती हो ,
इस तरह से आना जाना खुद को नहीं भाता ,
पर
मजबूर हूँ मैं जो तुम्हारी यादो से आज भी नहीं निकल पाता,
कभी कसम खाता हूँ ,
फिर तोड़ देता हूँ उसको तुम्हारे लिए ,
जब अब ये पता है कि
तुम मेरी नहीं हो ,
कभी भूल जाने का वादा अब तो हर रोज ही तोड़ता हूँ ,
शायद कभी मिल जाओं तो बातऊगा तुमको सारी बातें दिल,
कहूँगा जज्बात दिल के ,
और जाने नहीं दूंगा इस बार मैं ,
ये जिद मेरी रहती है अपने आपसे ,
जबकि ये जानता हूँ- ये कल्पना है इसके सिवा कुछ भी नहीं ,
पर इस तरह सोच के खुद को , बहलाता हूँ ,
तुमको अपने करीब पाता हूँ ,
ये हक मेरा तुम नहीं छिन सकती,
ये तुम भी नहीं जानती ,
याद करता हूँ और करता रहूँगा ,
ये जानलो तुम ।
शनिवार, 16 जनवरी 2010
ये हक है मेरा
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7 comments:
neeshu ji...kitni khubsurti se shabdo me piroya ha ehsaso ko....bohot hi acchi lagi apki ye rachna...
behad umda ........bahut hi gahre bhav.
अच्छी कविता लिखी है दोस्त
nice
बेहतरीन रचना!!
bahut khub neeshoo ji, aapka shbdo ke sath khelna bahut accha laga , es sundar rchna ke liye badhai.
neeshu ji bahut hi acchi awam umda rachna thi
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