नाम- गरिमा सिंह
आपका जन्म बिहार राज्य के समस्तीपुर जिले में २५ फरवरी सन १९८६ को हुआ । आपने स्नातक और परास्नातक की शिक्षा ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय , दरभंगा से प्राप्त की । वर्तमान में आप इसी विश्वविद्यालय से इतिहास विषय में शोधरत हैं ।आपका पालन-पोषण आपके नाना और नानी जी ने किया । आप बापू को अपना आदर्श मानते हुए समाजसेवा में रूचि रखती हैं । आपको हिन्दी साहित्य से गहरा लगाव बचपन से ही रहा है ।
संपर्कः योगेश्वर सिंह चन्द्र-योग सदन , ताजपुर रोड आजाद चौक,बी०एड० कालेज रोड ,समस्तीपुर, बिहार-८४८१०१
प्रतीक्षा - शिविर
एक उजाले की आस में ,
जीवन प्रतीक्षा-शिविर बनकर ,
लगा रहा अपनी कल्पनाओं के गोते,
महलों से दूर ,
झोपड़ी के टूटे
ओसारे पर खेल रहे
बच्चों की बातें ,
सुन रही है उनकी मां -
कि पिता जी लायेगें आज रसगुल्ले उनके लिए
मीठे बड़े रस भरे
निकले हैं सुबह
इस प्रतीक्षा- शिविर में
उन्हें अकेला छोड़
किसी काम की तलाश में ।
बच्चों की बातें
मां को कर रही है उद्गिग्न
देखती है वह दूर
क्षितिज पर उतरते सूरज को ,
दिख रहा है दूर से कोई आता
थके कदमों से खाली हाथ ,
मायूस वह सोच रहा है ,
पास आकर कुछ कहना ,
पर हाथ ही वह फैलाकर रह जाता है ,
जिस हथेली में बंधी है एक पुड़िया ,
चीत्कार उठती है
फेंक दूर उस पुड़िया को ,
कि अब भी अपने हिस्से के
उजाले की आस में
वह रहना चाहती है जिन्दा
अपनी प्रतीक्षा - शिविर में ।
12 comments:
गरिमा जी आपको बहुत बहुत बधाई । आपकी कविता को पढ़कर जो दृश्य चित्रित होता है वह बहुत ही मार्मिक है । एक ऐसे परिवार के सपनों की कल्पना और हकीकत को आपने शब्द रूपी मोती में बखूबी पिरोया है ।
गरिमा जी सबसे पहले आपको बहुत-बहुत बधाई देना चाहूंगा, इस सर्वश्रेष्ठ कविता के लिए । आपने इस कविता में उस दृश्य को बखूबी चित्रीत किया जब हमारी इच्छायें मजबूरीयों तले दब जाती हैं । कविता बेहद मार्मिक व लाजवाब लगी ।
कौन कहता कि अच्छा साहित्य आज हमें पढ़ने को नहीं मिलता ...................आपने कविता के द्वारा एक गरीब परिवार की सच्चाई को बयां किया है । आपको बधाई विजेता चुने जाने के लिए और शुभकामनाएं । आगे भी इसी तरह से सशक्त लेखन करती रहें ।
बहुत सुन्दर कविता रची है आपने । पढ़कर मजा आ गया । आपको बधाई ।
सुन्दर व भाव पूर्ण कविता, बधाई.----
---समालोचना-- मेरे ख्याल से शब्द " प्रतीक्षा .." होना चाहिये, प्रतिक्षा अशुद्ध है. पर यह तो प्रकाशक को ठीक करना चाहिये, हो सकता है टाइप की गलती हो.
--गरीब बच्चों ने रसगुल्ले खाये ही कब होंगे, बिचारों को मीठा स्वाद भी कहां पता होगा.
Garima ji badhai.
Apne Naam ke anuroop apke kavita ki bhee garima hai, jo nischai hi tarif ke kabil hai.
...........
जिस हथेली में बंधी है एक पुड़िया ,
चीत्कार उठती है
फेंक दूर उस पुड़िया को ,
कि अब भी अपने हिस्से के
उजाले की आस में
वह रहना चाहती है जिन्दा
अपनी प्रतिक्षा - शिविर मे...
Bejor pankti...
no doubt, Aashawad kisee bhi paristhitee me jinda rah sakta hai.
Publisher se nivedan-
Wartani par dhyan de. Plz.
Ashutosh
हिन्दी साहित्य मंच की कविता प्रतियोगिता की विजेता कविता "प्रतिक्षा - शिविर" ..............गरिमा सिंह को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
garima ji
dher saari badhaayiyan .. aap bahut accha likhti hai ...
aabhar
vijay
गरिमा जी को बहुत बहुत बधाई।
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या इलाही ये माजरा क्या है?
क्या इच्छाधारी साँप सचमुच अपना रूप बदल सकता है?
डा० श्याम गुप्ता जी , आपने अशुद्धियों की तरफ ध्यान दिया । अब सुधार कर दिया गया है । आपका धन्यवाद ।
गरिमा जी की कविता उनके नाम की तरह हिन्दी साहित्य मंच की गरिमा बढ़ा रही है।
बधाई. मार्मिक चित्रण है. रचना प्रभावशाली है.
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