सड़क के किनारे का
वो लैम्पपोस्ट,
कितना बेबस लगता है ,
आते-जाते लोगों को ,
चुपचाप देखता है ,
अपनी रोशनी से
करता है रोशन शामों शाहर को,
और
खुद अंधेरा सहता है,
कपकपाती ठंड,
सर्द हवा,
कोहरे की धुंध ,
कुत्ते की भौक,
सोया हुआ इंसान ,
यही साथी हैं उसके,
शांत , निश्चल
पर आत्मविश्वास से ,
भरा हुआ,
खड़ा रहता है वह,
हमेशा,
इंसान की राहों को ,
रोशन करने ,
खुद को जलाकर,
कितना निःस्वार्थ,
निश्कपट,
निरछल
भाव से,
करता है अपना
समर्पण ,
दूसरों के लिए ।।
6 comments:
आपकी यह कविता वास्तविक जीवन को दर्शाती है । सुन्दर चित्रण किया है आपने । बधाई
nishu ji aap ki kavita bahut hi acchi lagi padhkar .
लैम्प पोस्ट् के माध्यम से एक सुन्देर सन्देश देती कविता जो दूसरों के लिये जीते हैं उन्हें त्याग करना ही पडता है मल्लाह के हुक्के मे पानी कहाँ होता है सुन्देर कविता के लिये बधाई
हम सभी को खुद के लिए ही नहीं जीना चाहिए । प्रेरित करती यह रचना बहुत ही अच्छी बनी है ।
बहुत ही बेहतरीन कविता ।
waah nishoo ji ,
shaandar kavita , zindagi ke darshan ko darshati hui ...
aapne bahut accha likha hai .
meri dil se badhai sweekar kariyenga
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
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