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सोमवार, 18 मई 2009

बड़ा कठिन है
टूटते परिवारों में रिश्तों की डोर थामें रखना ,
नहीं रही कोई अहमियत परिवारों से जुड़े पवित्र बंधन की ,
आलीशान मकानों के बीच छिप सा गया है घर ,
किसी ईट पत्थर की चुनाई में दरक रहा है विश्वास ,
अपनी छत के नीचे अब दीवारों से नहीं टकराते अनुभव बुजुर्गों के,
बच्चों को नहीं सुनने मिलती ,दादी नानी की कहानिया ,
नहीं होती शरारत देवर भाभी के बीच , मुंह फेर लेते हैं भाई भी नजर
टकराने पर ,ये सच है जर , जोरू , जमीन की ,।जंग छिड़ी है चहुंओर लेकिन अस्तित्व बचाने , मजबूत रखनी होगी रिश्तों की डोर ।
By

Mridul purohit, son of shantinath purohit, 6/129, khandu colony, banswada, rajasthan.