फिर एक बार
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आओ....
बदल डालें दीवार पर
लटके कलेन्डर
फिर एक बार,
इस आशा के साथ
कि-
शायद इसबार हमें भी मिलेगा
अफसर का सद व्यवहार
नेता जी का प्यार
किसी अपने के द्वारा
नव वर्ष उपहार.
सारे विरोधियों की
कुर्सियां हिल जाऐं
मलाईदार कुर्सी
अपने को मिल जाऐ.
सुरसा सी मँहगाई
रोक के क्या होगा ?
चुनावी मुद्दा है
अपना भला होगा .
जनता की क्यों सोचें ?
उसको तो पिसना है
लहू बन पसीना
बूँद-बूँद रिसना है
रिसने दो, देश-हित में
बहुत ही जरूरी है
इसके बिन सब
प्रगति अधूरी है.
प्रगति के पथ में
एक साल जोड दो
विकास का रथ लाकर
मेरे घर पे छोड दो.
बदल दो कलेन्डर
फिर एक बार
आगत का स्वागत
विगत को प्रणाम
फिर एक बार......!!
डॉ.योगेन्द्र मणि
बुधवार, 30 दिसंबर 2009
फिर एक बार ///कविता
8:05 pm
4 comments
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4 comments:
बढ़िया कटाक्ष करती हुई रचना है। बधाई।
सारे विरोधियों की
कुर्सियां हिल जाऐं
मलाईदार कुर्सी
अपने को मिल जाऐ.
बहुत खूब...बढ़िया बढ़िया बात कही आपने...नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ
खुबसूरत रचना आभार
नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं ................
बहुत सुन्दर रचना
बहुत बहुत आभार
इस उम्दा रचना के लिए बधाई
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