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शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

आज तुम फिर मुझसे खफा हो .........जानता हूँ मैं

आज तुम फिर खफा हो मुझसे,

जानता हूँ मैं,
न मनाऊगा तुमको,
इस बार मैं।
तुम्हारा उदास चेहरा,
जिस पर झूठी हसी लिये,
चुप हो तुम,
घूमकर दूर बैठी,
सर को झुकाये,
बातों को सुनती,
पर अनसुना करती तुम,
ये अदायें पहचानता हूँ मैं,
आज तुम फिर खफा हो मुझसे,
जानता हूँ मैं।
नर्म आखों में जलन क्यों है?
सुर्ख होठों पे शिकन क्यों है?
चेहरे पे तपन क्यों है?
कहती जो एक बार मुझसे,
तुम कुछ भी,
मानता मै,
लेकिन बिन बताये क्यों?
आज तुम फिर खफा हो मुझसे,
जानता हूँ मै।।

2 comments:

Mithilesh dubey ने कहा…

उम्दा अभिव्यक्ति । बधाई

संजय भास्‍कर ने कहा…

लाजवाब पंक्तियाँ