यार पुराने छूट गए तो छूट गए
कांच के बर्तन टूट गए तो टूट गए
सोच समझ कर होंट हिलाने पड़ते हैं
तीर कमाँ से छूट गए तो छूट गए
शहज़ादे के खेल खिलोने थोड़ी थे
मेरे सपने टूट गए तो टूट गए
इस बस्ती में कौन किसी का दुख रोये
भाग किसी के फूट गए तो फूट गए
छोड़ो रोना धोना रिष्ते नातों पर
कच्चे धागे टूट गए तो टूट गए
अब के बिछड़े तो मर जाएंगे ‘परवाज़’
हाथ अगर अब छूट गए तो छूट गए
3 comments:
बेहद उम्दा रचना । बधाई
Waah !!! Bahut hi sundar rachna !!!
छोड़ो रोना धोना "रिष्ते" नातों पर
uparyukt pankti me shabd riste ko sudhaar len..
बहुत बढ़िया!!
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