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गुरुवार, 5 नवंबर 2009

रिश्ते बंद है आज चंद कागज के टुकड़ो में

रिश्ते बंद है आज



चंद कागज के टुकड़ो में,


जिसको सहेज रखा है मैंने


अपनी डायरी में,


कभी-कभी खोलकर देखता हूँ


उनपर लिखे हर्फों को


जिस पर बिखरा है


प्यार का रंग,


वे आज भी उतने ही ताजे है


जितना तुमसे बिछड़ने से पहले,


लोग कहते हैं कि बदलता है सबकुछ


समय के साथ,


पर ये मेरे दोस्त


जब भी देखता हूँ गुजरे वक्त को,


पढ़ता हूँ उन शब्दो को


जो लिखे थे तुमने,


गूजंती है तुम्हारी आवाज


कानो में वैसे ही,


सुनता हूँ तुम्हारी हंसी को


ऐसे मे दूर होती है कमी तुम्हारी,


मजबूत होती है रिश्तो की डोर


इन्ही चंद पन्नो से,


जो सहेजे है मैंने न जाने कब से।

6 comments:

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुंदर रचना !!

वाणी गीत ने कहा…

कागज में बंद चाँद रिश्ते ...
भावपूर्ण अभिव्यक्ति ..!!

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

मनुष्‍य के लिए हवा-पानी की तरह ही रिश्‍ते भी जरूरी हैं। इन्‍हें जितना अपने पास रखा जाए, उतना ही सुकून देते हैं। आपकी अभिव्‍यक्ति पसन्‍द आयी, बधाई।

सदा ने कहा…

कानो में वैसे ही,
सुनता हूँ तुम्हारी हंसी को
ऐसे मे दूर होती है कमी तुम्हारी,
मजबूत होती है रिश्तो की डोर
इन्ही चंद पन्नो से,

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों का चयन, भावपूर्ण प्रस्‍तुति के लिये बधाई ।

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना है।

Gurramkonda Neeraja ने कहा…

वक्त गुजर जाता है पर यादें रह जाते हैं
भले ही आज रिश्ते टूट रहे हैं पर रिश्तों की अपनी अहमियत है