वो नज़रों से मेरी नज़र काटता है
मुहब्बत का पहला असर काटता है
मुझे घर में भी चैन पड़ता नही था
सफ़र में हूँ अब तो सफर काटता है
ये माँ की दुआएं हिफाज़त करेंगी
ये ताबीज़ सब की नज़र काटता है
तुम्हारी जफ़ा पर मैं ग़ज़लें कहूँगा
सुना है हुनर को हुनर काटता है
ये फिरका-परसती ये नफरत की आंधी
पड़ोसी, पड़ोसी का सर काटता है
5 comments:
सफर लम्बा हो जाए तो फिर वह सफर नहीं रहता जी का जंजाल बन जाता है। इस भाव को गजल में बखूबी बयां किया गया है।
धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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ये फिरका-परसती ये नफरत की आंधी पड़ोसी, पड़ोसी का सर काटता है
kroor sachchayi
ये माँ की दुआएं हिफाज़त करेंगी
ये ताबीज़ सब की नज़र काटता है
आपकी रचना में भाषा का ऐसा रूप मिलता है कि वह हृदयगम्य हो गई है।
बात हुनर को हुनर काटता है सही लगी। दीप की ज्योति सा ओज आपके जीवन में बना रहे इस कामना के साथ दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं। आपकी बुद्धि में गणेश की छाया,घर में लक्ष्मी की माया और कलम में सरस्वती का वास रहे।
*Happy Deepavali*
ये फिरका-परसती ये नफरत की आंधी
पड़ोसी, पड़ोसी का सर काटता है
bejod.
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