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शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

"ज़रा सी देर"-----जतिन्दर परवाज़


ज़रा सी देर में दिलकश नजारा डूब जायेगा



ये सूरज देखना सारे का सारा डूब जायेगा


न जाने फिर भी क्यों साहिल पे तेरा नाम लिखते हैं


हमें मालूम है इक दिन किनारा डूब जायेगा


सफ़ीना हो के हो पत्थर हैं हम अंजाम से वाक़िफ़


तुम्हारा तैर जायेगा हमारा डूब जायेगा


समन्दर के सफ़र में क़िस्मतें पहलु बदलती हैं


अगर तिनके का होगा तो सहारा डूब जायेगा


मिसालें दे रहे थे लोग जिसकी कल तलक हमको



किसे मालूम था वो भी सितारा डूब जायेगा

10 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बहुत सुन्दर शेर है !

निर्मला कपिला ने कहा…

पूरी गज़ल लाजवाब है मगर कुछ शेर दिल को छू गये
समन्दर के सफ़र में क़िस्मतें पहलु बदलती हैं


अगर तिनके का होगा तो सहारा डूब जायेगा
न जाने फिर भी क्यों साहिल पे तेरा नाम लिखते हैं


हमें मालूम है इक दिन किनारा डूब जायेगा
आपकी गज़ल पढ्ना बहुत अच्छा लगता है बधाई

रज़िया "राज़" ने कहा…

न जाने फिर भी क्यों साहिल पे तेरा नाम लिखते हैं


हमें मालूम है इक दिन किनारा डूब जायेगा
वैसे तो पूरी गज़ल लाजवाब!!! पर ये एक शे'र तो सुबहानल्लाह!!!

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत खुब परवाज जी। दिल को छु गयी आपकी ये गजल।

अगर तिनके का होगा तो सहारा डूब जायेगा
न जाने फिर भी क्यों साहिल पे तेरा नाम लिखते हैं

Unknown ने कहा…

kya baat hai bhut khub .

शागिर्द - ए - रेख्ता ने कहा…

सफ़ीना हो के हो पत्थर हैं हम अंजाम से वाक़िफ़
तुम्हारा तैर जायेगा हमारा डूब जायेगा...|

वाह जनाब , बहुत खूब ...
बेहतरीन ग़ज़ल ...|

kush ने कहा…

वाह जनाब , बहुत खूब ...
आपकी ये गजल दिल को छु गयी ।

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन, आनन्द आ गया.

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

जतिन्दर जी इस रचना के लिए बधाई । आप बेहतरीन लिखते हैं ।शुभकामनएं

प्रिया ने कहा…

badiya..... behtareen