दर्द को छुपाते हैं हम, दर्द दिखने की आदत नहीं हमारी दिल की आवाज़ तो पुहच जाती है उनके दर पे, न किसी की हमदर्दी न किसी का प्यार चाहिए काश नफरत हम भी धर लेते उनकी तरह भुलाना तो चाहते हैं हम भी उन्हें
खुद अश्क पी जाते हैं हम, दुसरो के अश्क बहाने की आदत नहीं.
पर शायद उन्हें दिल तक पुह्चाने की आदत नहीं .
पर यूँ नफरत मैं जल जाने की आदत नहीं.
अश्क तो आज भी उनकी याद मैं आते हैं
पर किसी के पीछे पड़ जाने की आदत नही.
रोना तो अब आदत सी है हमारी
पर आंसूं के सेलाब मैं डूब जाने की आदत नहीं.
पैर यूँ पत्थर दिल बन जाने की आदत नहीं.
पैर यूँ किसी की यादें मिटने की आदत नहीं
गुरुवार, 24 सितंबर 2009
दर्द --------- "गुरशरण जी"
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2 comments:
दर्द को छुपाते हैं हम, दर्द दिखने की आदत नहीं
खुद अश्क पी जाते हैं हम, दुसरो के अश्क बहाने की आदत नहीं.
कुद अश्क पी जाते है हम, बहुत खुब गुरुशरण जी। शुभकामनायें......
बहुत सुंदर भाव।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
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