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मंगलवार, 29 सितंबर 2009

तब रिश्ते अग्नि के चारों ओर---------" निर्मला कपिला जी"



तब रिश्ते



अग्नि के चारों ओर



फेरे दे कर



तपाये जाते



प्रण ले कर



निभाये भी जाते




और कई बार



रिश्तों मे



एक पल निभाना भी



हो जाता है कितना कठिन



तभी तो आजकल




रिश्ते कागज़ पर




लिखाये जाते हैं



अदालत मे और



बनाये जाते है



वकील दुआरा



अब कितना आसान हो गया



रिश्ते को तोड्ना



कागज़ पर कुछ



शब्द जोड्ना



और हो जाना



बन्धन से आज़ाद

12 comments:

सदा ने कहा…

तभी तो आजकल
रिश्ते कागज़ पर
लिखाये जाते हैं

बहुत ही सुन्‍दर पंक्तियां सत्‍य को प्रस्‍तु‍त करते शब्‍द लाजवाब ।

Meenu Khare ने कहा…

बहुत ही मार्मिक.

वाणी गीत ने कहा…

जो रिश्ते कागज पर निभाए जाते हैं ...उनका हश्र आये दिन हम देखते ही हैं ...आजकल तो अग्नि के पवित्र फेरे लेने वालों का अंजाम भी कुछ खास सुखद नहीं रहा ...!!

Mithilesh dubey ने कहा…

सच्चाई को उकेरती एक दम सटिक प्रस्तुती।

SACCHAI ने कहा…

nirmalaji,

" bahut bahut saty bhari baat aapne kahe di ...her alfaz saty se bhara ..behad khub surat ..rachana .."

------ eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

http://hindimasti4u.blogspot.com

ओम आर्य ने कहा…

बहुत ही मार्मिक रचना अतिसुन्दर रचना........आंखे नम हो गयी!

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

वाह कितना बडा सच कह दिया आपने .बहुत सुन्दर.

निर्मला कपिला ने कहा…

हिन्दी साहित्यमंच का बहुत बहुत धन्यवादिस रचनाको छापने के लिये । बाके सब का भी धन्यवाद मेरे उत्साहवर्द्धन के लिये

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

जी धन्यवाद ...........निर्मला जी ऐसे ही अपना सहयोग बनाये रहें ।

Unknown ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना ....................रिश्ते पर केन्द्रित । बधाई

मनोज कुमार ने कहा…

यथार्थ का अच्छा चित्रण। सच अब ये कहने वाले कहां मिलते हैं
साथ निभाने को संग खाई है जो क़समें
छोटी सी बात पर क्यों फैसला बदल लूं।

शागिर्द - ए - रेख्ता ने कहा…

अच्छी अभिव्यक्ति है आपकी
सुंदर रचना
जय हो ...