शजर पर एक ही पत्ता बचा है
हवा की आँख में चुभने लगा है
नदी दम तोड़ बैठी तशनगी से
समन्दर बारिशों में भीगता है
कभी जुगनू कभी तितली के पीछे
मेरा बचपन अभी तक भागता है
सभी के ख़ून में ग़ैरत नही पर
लहू सब की रगों में दोड़ता है
जवानी क्या मेरे बेटे पे आई
मेरी आँखों में आँखे डालता है
चलो हम भी किनारे बैठ जायें
ग़ज़ल ग़ालिब सी दरिया गा रहा है
3 comments:
परवाज़ जी की हर गज़ल का एक एक शेर लाजवाब होता है ये समझ नहीं आता कि किस शेर पर दाद दें लाजवाब गज़ल के लिये परवाज़ जी को बधाई
वाह परवाज जी बहुत खुब। आपके हर एक शब्द का चयन लाजवाब है, और आपने उतनी ही अच्छी तरह से उन्हे पिरोया। बहुत-बहुत बधाई.......
बहुत खूबसूरत अशआर है.
बधाई!
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