यह कैसा ग़म है यह कैसा ग़म है लब खामोश दिल उदास और आँख नम है हौंसला बीमार, उम्मीदें अधमरी, मरा जज्बा मेरे जिस्म में मचा हुआ एक मातम है बदन की झुर्रियों की गिनती तो अब भी दिल के ग़मों से कम है सूखे में सूख गई उम्मीदें सारी और चटके हुए बदन में बाकी हम हैं. खुशियाँ तो जैसे अगवा कर लीं किसी ने अब बाकी, बाकी बचा तो बस ग़म है
रविवार, 20 सितंबर 2009
यह कैसा ग़म है ---------"शामिख फ़राज़"
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6 comments:
वाह-वाह क्या बात है, दिल को छु गयी आपकी ये रचना। बहुत-बहुत बधाई........
बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति
सूखे में सूख गई उम्मीदें सारी
और चटके हुए बदन में बाकी हम हैं.
खुशियाँ तो जैसे अगवा कर लीं किसी ने
अब बाकी, बाकी बचा तो बस ग़म है
waah waah,,
bahut khoob...
be-hadd nafees aashaar hain..
बहुत सुन्दर रचना .
dil ko choo gayi ye rachna bhai sahab. krpya aap apnagharbharatpur.org dekhe. aaur pratikriya deve
dil ko choo gayi ye rachna bhai sahab. krpya aap apnagharbharatpur.org dekhe. aaur pratikriya deve
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