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गुरुवार, 10 सितंबर 2009

"गुमसुम तनहा बैठा होगा"------जतिन्दर परवाज़

गुमसुम तनहा बैठा होगा



सिगरेट कश भरता होगा


उसने खिड़की खोली होगी


और गली में देखा होगा


ज़ोर से मेरा दिल धड़का है


उस ने मुझ को सोचा होगा


सच बतलाना कैसा है वो


तुम ने उस को देखा होगा


मैं तो हँसना भूल गया हूँ


वो भी शायद रोता होगा


ठंडी रात में आग जला कर


मेरा रास्ता तकता होगा


अपने घर की छत पे बेठा


शायद तारे गिनता होगा



6 comments:

Unknown ने कहा…

बहुत ही सुंदर कविता । कल्पना गजब की रही । शुभकामनाएं

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत खुब परवाज भाई लाजवाब प्रस्तुती। क्या करें, न पता क्यो राह तकना पङता है।

रज़िया "राज़" ने कहा…

सुंदर रचना।

मैं तो हँसना भूल गया हूँ


वो भी शायद रोता होगा
लाजवाब।

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत गजल कही है। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Udan Tashtari ने कहा…

सुंदर कविता ..

प्रिया ने कहा…

bahut badiya