गुमसुम तनहा बैठा होगा
सिगरेट कश भरता होगा
उसने खिड़की खोली होगी
और गली में देखा होगा
ज़ोर से मेरा दिल धड़का है
उस ने मुझ को सोचा होगा
सच बतलाना कैसा है वो
तुम ने उस को देखा होगा
मैं तो हँसना भूल गया हूँ
वो भी शायद रोता होगा
ठंडी रात में आग जला कर
मेरा रास्ता तकता होगा
अपने घर की छत पे बेठा
शायद तारे गिनता होगा
6 comments:
बहुत ही सुंदर कविता । कल्पना गजब की रही । शुभकामनाएं
बहुत खुब परवाज भाई लाजवाब प्रस्तुती। क्या करें, न पता क्यो राह तकना पङता है।
सुंदर रचना।
मैं तो हँसना भूल गया हूँ
वो भी शायद रोता होगा
लाजवाब।
बहुत ही खूबसूरत गजल कही है। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सुंदर कविता ..
bahut badiya
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