तुम्हारा मन पारस है
और तन सोना
उदार हिरदय मे है
भरी
सबके लिए करूणा
मोतियों सा चमकता है तुम्हारा -मुस्कुराना
तुम्हारे प्यार के आठवे रंग
को आत्मसात कर
इन्द्रधनुष के रंगों की भी बढ़ जाती है शोभा -
हर रोज एक गाय आ जाती है
अपने माथे पर
तुमसे तिलक लगवाने
चीटियों की लाइन लग जाती है
तुमसे -मीठा स्नेह पाने
बिल्लियाँ भागती नही -
चाहती नही वे भी साथ तुम्हारा खोना
जब तक नही देख लेता तुम्हे
टॉमी ॥!
जारी रहता उसका रोना
सब्जी वाला ,दूध वाला या भिखारी
देख तुम्हे कहते देखो
बहना या माँ आई
पर तुम रहती सदा ध्यान मे
प्रकाश पुंज से तुम भीतर -बाहर घिरी हुई
उत्सुक
सदा
सुनने -सबकी वेदना
तुम बाटती
सबको भर -भर
प्रेम -प्रसाद का एक एक दोना
तुम नही रहती
तब
बच्चो को घर लगता सुना
तुम्हे देख कर भूख मिट जाती
तुम्हारे हाथो से बने भोजन
मे होता है -स्वाद दुगुना
तुम घर हो तुम माँ हो
तुम्ही हो
हम सबकी नीद के लिए
कोमल ममत्व भरा बिछौना
तुम्हारा मन पारस है
और तन सोना -
प्यार से लेकिन कभी -कभी
मेरा नाती कहता
तुम्ही हीरा ,और मेरी चांदी ..हो..ना
11 comments:
माँ की स्तुति में बेजोड़ रचना
bahat khub.......keep writing
kishor jee,
hamesha kee tarah bahut hin sundar rachna, badhai sweekaren.
BrijmohanShrivastava jii
shukriyaa
shankha jii shukriyaa
jenny shabnam jii shukriyaa
Aapki
Kishor Ji, " Maa" per likhi ye kavita, aapki likhi hui anya kavitaon ki tarah atulniya hai ... Bahut badhiya... !!
Kavita padhkar mujhay meri Dadi Maa ki yaad aa gayi :( wo bhi thik isi tarah mamtamayi aur saral hrudaya thi ...
Keep it up!!
kishor ji
aapki kavita mein maa ko padhna bahut achha laga
maa aisi hi hoti hai
Anita jii
bahut bahut shukriyaa
श्रद्धा जैन
jii
man sae shuriyaa
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