जन्नत मुझको दिला दी जिसने दुनिया में
वो है मेरी माँ
दुनिया में जीने का हक दिया मुझको
वो है मेरी माँ
कचरे का ढ़ेर नदिया किनारा था मेरा
मुझको अपनी दुनिया बना ली
वो है मेरी माँ
रात का अंधेरा मेरी आखों का डर
मेरे डर मेरी ताकत बनी
वो है मेरी माँ
मैं डर क़र ना सोया पूरी रात कभी
मेरे लिए जागकर मुझे सुलाया
वो है मेरी माँ
कभी परेशानी मेरा सवब जो बनी
मेरे रास्ते में फूल जिसने बिखेरे
वो है मेरी माँ
मेरे जुर्म की सजा खुद ने पाई
मुझको अपने आचंल में छुपा लिया
वो है मेरी माँ
मंदिर मस्जिद ना किसी की खबर मुझको
ना गीता कुरान का ज्ञान मुझको
फिर भी मुझको जहन्नुम से बचाय
वो है मेरी माँ
कहते हैं लोग
माँ के कदमो में जन्नत होती है
मैंने कहा
जन्नत से भी जो ऊपर है
वो है मेरी माँ
सोमवार, 8 जून 2009
मेरी मां - ( कविता ) मुस्तकीम खान
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2 comments:
wah gue ga ngeti neh so nice blog aja deh
bahut khub
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