आज कल शहर में, सन्नाटे बहुत गहरे हुए जाते है ।
कोई रोको हमे की हम, अब प्यार में दीवाने हुए जाते है ।।
तेरे ख्याल बस अब मेरे, जीने के सहारे हुए जाते है ।
वरना आजकल तो खुद ही हम, खुद से वेगाने हुए जाते है ।।
ज़िन्दगी ले चली है, हमे जाने किस मोड़ पर।
अब तो रास्ते ही मेरे, ठिकाने हुए जाते है ।।
मोहब्बत का करम है, जो मुझे ये किस्मत ।
अब तो बातो- में न जाने ,कितने फसाने हुए जाते है।।
चंद लम्हो में मिली ,है जो दौलत हम को ।
इतने नशे में है,कि मयखाने हुए जाते है।।
मेरी बातो को हसी में न लेना, मैं सच कहती हूँ ।
कि अब हर खुशी के आप ही, बहाने हुए जाते है ।।
रुकी-रुकी सी नदी थी, ये जिन्दगी मेरी ।
अब तो रुकना-ठहरना लगता है, अफ़साने हुए जाते है।।
गुरुवार, 4 जून 2009
आज कल शहर में - गार्गी गुप्ता
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6 comments:
गार्गी जी , बहुत ही सुन्दर गजल पेश की ।
मेरी बातो को हसी में न लेना, मैं सच कहती हूँ ।
कि अब हर खुशी के आप ही, बहाने हुए जाते है ।।
khubsurat gazal .....
बहुत अच्छी नज़्म.....लिखकर पढ़ने का मौका देने के लिए शुक्रिया गार्गी जी का......
साभार
हमसफ़र यादों का.......
bahaut sundar gajal padhne mukaa milgaya.
बहुत ही अच्छी गज़ल
''अफ़साने हुए जाते है'' को मै समझ नही सका हूँ।
bahut khub undar gajal .
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