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शनिवार, 30 मई 2009

अभी भी ...... (कविता) Prakash Govind

अभी भी मन को मोह लेते हैं
फूल, पत्ते और मौसम
अभी भी कोशिश करता हूँ उनसे संवाद करने की
अभी भी मुग्ध कर देती है हैं खिली हुयी मानव छवियाँ
और मैं गुनगुनी झील में उतराने लगता हूँ
अभी भी आते हैं बाल्यवस्था के सपने
और मैं नदी में नाव सा बहने लगता हूँ
अभी भी भौंरे व चिडियों का संगीत
बज उठता है धीरे से कानों में
और मैं सितार सा झनझना जाता हूँ
अभी भी उपन्यासों के के पात्रों,
फिल्मी चरित्रों का दर्द
उनका घायल एकाकीपन
मुझे देर तक उदास कर जाता है
अभी भी इसका उसका जाने किस किसका
क्रूर और फूहड़ सुख
मेरे अंतर्मन को क्रोध से उत्तेजित कर देता है
अभी भी अक्सर मुझे आईना फटकार लगा देता है
अभी भी मौका मिलते ही ठहाके लगाना नहीं भूलता
यारों क्या अजीब बात है
मालूम होता है कि इस उम्र में भी
मैं जिन्दा हूँ औरों से थोडा ज्यादा !!!!!

8 comments:

Unknown ने कहा…

sundar rachna

Alpana Verma ने कहा…

इस साईट के आयोजकों के लिए--आप की इस साईट पर लाल रंग के background में कमेन्ट करने का बटन छुप गया है.कमेन्ट भेजें[atom] पर क्लिक करते हैं तो फीड पर ले जाता है.माउस को घुमा कर खोजा है तब जा कर यह सही बटन हाई लाइट हुआ--यह बहुत बड़ी कमी है..इसे तुंरत ठीक कर लिजीयेगा.
क्योंकि जब कमेन्ट का बटन नहीं दिखेगा तो पाठक कैसे टिप्पणी करेगा?
abhaar sahit-Alpana

Alpana Verma ने कहा…

प्रकाश जी की कविता आशावादी कविता है,इस में जीवन दिखता है.
समझ के परिपक्व होने पर भी कई बार भावों के उतार चढाव मन को प्रभावित कर जाते हैं.मन भीतर से अपने बचपन का दामन कभी छोड़ता नहीं है.इस लिए भी कभी कभी भावों में बह जाना स्वाभाविक है.
सशक्त अभिव्यक्ति,भावपूर्ण रचना हेतु बधाई.

शिव शंकर ने कहा…

bahut hi sundar kavita .

Unknown ने कहा…

bahut khub sir ji acchi bhavna

निर्मला कपिला ने कहा…

एक सार्थक सशक्त सुन्दर रचना है आभार शुभ्कामनायें

बेनामी ने कहा…

अभी भी मन को मोह लेते हैं baut acchi kavita hai prkash ji

mustkeem ने कहा…

अभी भी मन को मोह लेते हैं jeevan ka sach hai prkash ji