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शुक्रवार, 29 मई 2009

क्या कहूँ

क्या कहूँ
मेरे प्यार मे ना रही होगी कशिश
जो वो करीब आ ना सके
हम रोते रहे तमाम उम्र
वो इक अश्क बहा ना सके
पत्थर की इबादत तो बहुत की
पर उसे पिघला ना सके
जो उन्हें भी दे सकूँ जीने के लिये
वो एहसास दिला ना सके
बहुत किये यत्न हमने
पर उनको करीब ला ना सके
पिला के जाम कर दो मदहोश मुझे
उस बेदर्दी की याद सता ना सके

4 comments:

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

मेरे प्यार मे ना रही होगी कशिश
जो वो करीब आ ना सके
हम रोते रहे तमाम उम्र
वो इक अश्क बहा ना सके.

वाह वाह निर्मला जी , बहुत खूब ।

Mithilesh dubey ने कहा…

वाह निर्मला जी , बहुत खूब । अच्छा लगा पढ कर ।

Mustkeem khan ने कहा…

bahut sundar laga padh ke . badhai

Yogendramani ने कहा…

पिलाके जाम कर दो मदहोश मुझे
उस बे दर्दी की याद सता न सके ।
भुत खूब लिखा हई आपने......! बधाई......!