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गुरुवार, 28 मई 2009

गीत

गीत
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ये बिजली का कड़कना
आँख मिलना,
मिलके झुक जाना
ये नाज़ुक लब फड़कना
कह न पाना ,
यूँ ही रुक जाना
हया से सुर्ख कोमल गाल
काली ज़ुल्फ क्या कहिये
समझते हैं निगाहों की
ज़ुबां को
आप चुप रहिऐ ।

ये तेरी नर्म नाज़ुक
अंगुलियों का छू जरा जाना
श्वांसें तेज हो जाना
पसीने से नहा जाना
हर एक आहट पे तेरा
चौंक जाना
हाय क्या कहिये
समझते हैं निगाहों की
ज़ुबां को
आप चुप रहिये ।

कदम तेरे यूँ उठना
छम से गिरना,
गिर के रुक जाना
कभी यूँ ही ठिठक जाना
कभी यूँ ही गुजर जाना
अजब सी कशमकश है
दिल की हालत
हाय क्या कहिये
समझते हई निगाहों की
ज़िबां को
आप चुप रहिये ।

मिलन पर दूर जना
सकपकाना कह नहीं पाना
बिछुडने पर सिसकना
रह न पाना ख्वाब में आना
तेरा हर बार मिलना
और बिछुडन
हाय क्या कहिये
समझते हैं निगाहों की
ज़ुबां को
आप चुप रहिये ।


डॉ.योगेन्द्र मणि

1 comments:

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

योगेन्द्र जी यह गीत आप का बहुत ही सुन्दर बना है .............खास कर चुटकी लेते हुए कि " आप चुप रहिये " । बधाई