सोचो न कभी खुद को तन्हा यहाँ
हम सब हैं साथ तुम्हारे सदा,
तुम्हारे साये की तरह,
तुम महसूस तो करो।
महसूस करो हमारा होना तुम,
अपने खून की रवानी में,
दिल की धड़कन में,
अपनी हर साँस में।
हर धड़कन में है संदेश
हमारे प्यार का।
हर साँस में है महक
स्नेह, दुलार की,
हम सभी के विश्वास की,
तुम महसूस तो करो।
गुजारे जो दोस्त, यारों के संग,
बचपन के वो सुहाने दिन,
गुजर गये वो
हवा के झोंकों की तरह।
लड़खड़ा कर गिरना,
सँभलना फिर
वो माता-पिता की बाँहों में।
वो अपनों से झगड़ने का
मीठा एहसास,
अब भी है
दिल के किसी कोने में,
बन करके याद तुम्हारे आसपास,
तुम महसूस तो करो।
मंगलवार, 12 मई 2009
तुम महसूस तो करो
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6 comments:
बेहतरीन भाव से सजी आपकी यह रचना बहुत ही प्रभावशाली लगी ।
आपकी यह प्रस्तुती भावपूर्ण लगी ।
bahut achchhi kavita jo mere khyalo se takrai .
sunder rachna
आपकी यह रचना प्रेरणादायक लगी । बेहतरीन कविता के लिए धन्यवाद
भावपूर्ण रचना को आपने सरल शब्दों में ढ़ाल कर मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है । शुभकामनाएं
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