आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....
कुछ याद दिला गया , कुछ भुला दिया ,
मुझको ; मेरे शहर ने रुला दिया.....
यहाँ की हवा की महक ने बीते बरस याद दिलाये
इसकी खुली ज़मीं ने कुछ गलियों की याद दिलायी....
यहीं पहली साँस लिया था मैंने ,
यहीं पर पहला कदम रखा था मैंने ...
इसी शहर ने जिन्दगी में दौड़ना सिखाया था.
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....
दूर से आती हुई माँ की प्यारी सी आवाज ,
पिताजी की पुकार और भाई बहनो के अंदाज..
यहीं मैंने अपनों का प्यार देखा था मैंने...
यहीं मैंने परायों का दुलार देख था मैंने .....
कभी हँसना और कभी रोना भी आया था यहीं , मुझे
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....
कभी किसी दोस्त की नाखतम बातें..
कभी पढाई की दस्तक , कभी किताबो का बोझ
कभी घर के सवाल ,कभी दुनिया के जवाब ..
कुछ कहकहे ,कुछ मस्तियां , कुछ आंसू , कुछ अफ़साने .
थोड़े मन्दिर,मस्जिद और फिर बहुत से शराबखाने ..
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....
पहले प्यार की खोई हुई महक ने कुछ सकून दिया
किसी से कोई तकरार की बात ने दिल जला दिया ..
यहीं किसी से कोई बन्धन बांधे थे मैंने ...
किसी ने कोई वादा किया था मुझसे ..
पर जिंदगी के अलग मतलब होते है ,ये भी यहीं जाना था
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....
एक अदद रोटी की भूख ने आंखो में पानी भर दिया
एक मंजिल की तलाश ने अनजाने सफर का राही बना दिया..
कौन अपना , कौन पराया , वक्त की कश्ती में, बैठकर;
बिना पतवार का मांझी बना दीया ;मुझको ;मैंने...
वही रोटी ,वही पानी ,वही कश्ती ,वही मांझी आज भी मैं हूँ..
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....
लेकर कुछ छोटे छोटे सपनो को आंखों में ,मैंने
जाने किस की तालाश में घर छोड़ दिया,
मुझे जमाने की ख़बर न थी.. आदमियों की पहचान न थी.
सफर की कड़वी दास्ताँ क्या कहूँ दोस्तों ....
बस दुनिया ने मुझे बंजारा बना दिया ..
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....
आज इतने बरस बाद सब कुछ याद आया है ..
कब्र से कोई “विजय” निकल कर सामने आया है..
कोई भूख ,कोई प्यास ,कोई रास्ता ,कोई मंजिल ..
किस किस की मैं बात करूं ,
मुझे तो सारा जनम याद आया है...
आज मेरे शहर ने मुझे बहुत रुलाया है..
1 comments:
bahut khub vijay ji . sundar kavita
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