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रविवार, 17 मई 2009

विजय कुमार सप्पत्ति जी पांच रचनाएं [आमंत्रित कवि ]


कवि परिचय -
विजय कुमार सप्पत्ति जी हैदराबाद में रहते हैं । वर्तमान समय में एक कंपनी में Sr.GM- Marketing के पद पर कार्यरत हैं । साहित्य से बहेद लगाव है आपका । अबतक करीब २५० कवितायें, नज्में , गज़लें लिखी है आपने । पत्राचार सपंर्क हेतु -
V I J A Y K U M A R S A P P A T T I
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सिलवटों की सिहरन



अक्सर तेरा साया


एक अनजानी धुंध से चुपचाप चला आता है


और मेरी मन की चादर में सिलवटे बना जाता है …..


मेरे हाथ ,


मेरे दिल की तरह कांपते है , जब मैं


उन सिलवटों को अपने भीतर समेटती हूँ …..


तेरा साया मुस्कराता है और मुझे उस जगह छु जाता है


जहाँ तुमने कई बरस पहले मुझे छुआ था ,


मैं सिहर सिहर जाती हूँ ,कोई अजनबी बनकर तुम आते हो


और मेरी खामोशी को आग लगा जाते हो …


तेरे जिस्म का एहसास मेरे चादरों में धीमे धीमे उतरता है


मैं चादरें तो धो लेती हूँ पर मन को कैसे धो लूँ


कई जनम जी लेती हूँ तुझे भुलाने में ,


पर तेरी मुस्कराहट ,


जाने कैसे बहती चली आती है ,


जाने, मुझ पर कैसी बेहोशी सी बिछा जाती है …..


कोई पीर पैगम्बर मुझे तेरा पता बता दे ,


कोई माझी ,तेरे किनारे मुझे ले जाए ,


कोई देवता तुझे फिर मेरी मोहब्बत बना दे.......


या तो तू यहाँ आजा ,


या मुझे वहां बुला ले......


मैंने अपने घर के दरवाजे खुले रख छोडे है ........





मौनता



मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,


जिसे सब समझ सके ,


ऐसी परिभाषा देना ;


मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना.



मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,

ताकि ,

मैं अपने शब्दों को एकत्रित कर सकूँ


अपने मौन आक्रोश को निशांत दे सकूँ,


मेरी कविता स्वीकार कर मुझमे प्राण फूँक देना


मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,



मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,


ताकि मैं अपनी अभिव्यक्ति को जता सकूँ


इस जग को अपनी उपस्तिथि के बारे में बता सकूँ



मेरी इस अन्तिम उद्ध्ङ्तां को क्षमा कर देना


मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,



मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,


ताकि ,मैं अपना प्रणय निवेदन कर सकूँ


अपनी प्रिये को समर्पित , अपना अंतर्मन कर सकूँ


मेरे नीरस जीवन में आशा का संचार कर देना


मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,



मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,


ताकि ,मैं मुझमे जीवन की अनुभूति कर सकूँ


स्वंय को अन्तिम दिशा में चलने पर बाध्य कर सकूँ


मेरे गूंगे स्वरों को एक मौन राग दे देना


मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,





मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,


ताकि मुझमे मौजूद हाहाकार को शान्ति दे सकूँ


मेरी नपुसंकता को पौरुषता का वर दे सकूँ


मेरी कायरता को स्वीकृति प्रदान कर देना


मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,



मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,


ताकि मैं अपने निकट के एकांत को दूर कर सकूँ


अपने खामोश अस्तित्व में कोलाहल भर सकूँ


बस, जीवन से मेरा परिचय करवा देना


मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,



मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,


ताकि , मैं स्वंय से चलते संघर्ष को विजय दे सकूँ


अपने करीब मौजूद अन्धकार को एकाधिकार दे सकूँ


मृत्यु से मेरा अन्तिम आलिंगन करवा देना


मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,



मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना ,


जिसे सब समझ सके , ऐसी परिभाषा देना ;


मेरी मौनता को एक अंजानी भाषा देना….




परायों के घर


कल रात दिल के दरवाजे पर दस्तक हुई ;


नींद की आंखो से देखा तो ,


तुम थी ,


मुझसे मेरी नज्में मांग रही थी,


उन नज्मों को, जिन्हें संभाल रखा था , मैंने तुम्हारे लिए ,


एक उम्र भर के लिए ...


आज कही खो गई थी , वक्त के धूल भरे रास्तों में ......


शायद उन्ही रास्तों में ..


जिन पर चल कर तुम यहाँ आई हो....


क्या किसी ने तुम्हे बताया नही कि,


परायों के घर भीगी आंखों से नही जाते.....




आंसू



उस दिन जब मैंने तुम्हारा हाथ पकड़ा ,


तो तुमने कहा..... नही..


और चंद आंसू जो तुम्हारी आँखों से गिरे..


उन्होंने भी कुछ नही कहा... तो नही ... तो हाँ ..


अगर आंसुओं कि जुबान होती तो ..


सच झूठ का पता चल जाता ..


जिंदगी बड़ी है .. या प्यार ..


इसका फैसला हो जाता...




दर्द



जो दर्द तुमने मुझे दिए ,


वो अब तक संभाले हुए है !!


कुछ तेरी खुशियाँ बन गई है


कुछ मेरे गम बन गए है


कुछ तेरी जिंदगी बन गई है


कुछ मेरी मौत बन गई है


जो दर्द तुमने मुझे दिए ,


वो अब तक संभाले हुए है !!

5 comments:

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

विजय जी , सर्वप्रथम हिन्दी साहित्य मंच आपका स्वागत करता है इस मंच के प्रयास में भागीदारी करने के लिए ।सिलवटों की सिहरन नामक कविता में आपने प्रेम को दर्शाया , वहीं मौनता नामक कविता में एक सशक्त प्रस्तुति दी । आपकी रचनाओं शब्द अहम और सरलता के साथ गहरी छाप छोड़ रहे हैं । सभी रचनाएं एक चित्र उकेरती नजर आती है । शुभकामनाएं बहुत बहुत

Unknown ने कहा…

आपकी पांचों रचनाएं अतिसुन्दर लगी विजय जी । शब्द चयन , भाव सरल लगे । इस रचनाओं के लिए आपको बहुत बहुत बधाई

शिव शंकर ने कहा…

आपकी कविता " मौनता " पढ़कर बहुत ही आनंद आया । भाव रचना की प्रधानता को दिखा रहे थे । बाकी कि समस्त रचना भी सुन्दर बनी हुई है । बधाई

Unknown ने कहा…

विजय की आपकी सभी पांचों रचना बेहतरीन है । पढ़कर अच्छा लगा । शुक्रिया

annu ने कहा…

विजय जी , आपकी सभी कविताएं एक से बढ़कर एक लगी । लेखन बहुत ही सुन्दर लगा । बधाई