मेरे पास है बस मेरी तनहाई
बस इसी ने ही दोस्ती निभाई।
जब छोड रही थी मुझे मेरी परछाई
तब इसी ने आकार हिम्मत बंधाई।।
है पास मेरे मेरी तन्हाई
फिर किसी से रखु कैसी रुसबाई।
चन्द लम्हो में सारा जहाँ लुट गया
एक दौलत बची वो थी तनहाई।।
भूल बैठे थे हम इस हसी दोस्त को
पर चुप रह कर भी जो साथ चली वो थी मेरी तन्हाई ।
भरोसा है मुझे जब कोई साथ न होगा
तब साथ देगी मेरा मेरी तनहाई।।
तू अगर साथ है तो फिर कैसी रुसबाई
बस एक तू ही मेरे मन को है भाई।
संग चलती है मेरे खामोश रह कर
किस कदर शुक्रिया अदा करु मैं अदा मेरी तनहाई ।।
शनिवार, 16 मई 2009
मेरी तनहाई...[एक कविता ] - गार्गी गुप्ता
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8 comments:
meri rachna ko apne blog par sthan dene ke liye aap ka bhut bhut dhanyabad
main jald hi pratiyogta ke liye rachna dungi par abhi tak samaj nahi pa rahi ki vishay kya du is liye der ho rahi hai .....
गार्गी , गजब की कविता लिखी आपने तन्हाई पर । सुन्दर लगे कविता के भाव । शुभकामनाए
गार्गी जी , आप का लेखन जिस भी विषय पर होता है वह बहुत ही सशक्त होता है । आपने एक बेबसी और विरह का सुन्दर चित्रण किया है । आप ऐसे ही हमारी भागीदारी में सहयोग करती रहें यही आशा है । कविता प्रतियोगिता के लिए कविता किसी विषय विशेष पर नहीं है अतएव आप अपनी इच्छानुसार विषय चयन कर सकती है । शुभकामनाएं
दर्द भरी रचना प्रस्तुत की आपने । शब्द भी बहुत ही सरल है , भावपूर्ण हैं । आपको बहुत बहुत धन्यवाद
आपकी रचना से आपने सुन्दर चित्र उकेरा है दर्द का । पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा । आप को बहुत बहुत बधाईयां
गार्गी जी , आपकी यह रचना मुझे बहुत ही पसंद आयी । तहे दिल से आपको शुक्रिया अदा करता हूँ इस कविता को पढ़वाने के लिए । धन्यवाद
kavita ki komalta aur gambheerta dil ko choo gayi
AAPKO BADHAI GARGIJI
गार्गी जी , बहुत ही सुन्दर रचना है । बहुत ही दर्द छुपा है इसमें । भावपूर्ण रचना को आपने सरल शब्दों में ढ़ाल कर मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है । शुभकामनाएं
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