घर का चूल्हा जलता देखा
चूल्हे में लकड़ी जलती देखी
उस पर जलती हाँड़ी देखी,
हाँड़ी में पकते चावल देखे,
फिर भी प्राणी जलते देखे।
घर का चूल्हा जलता देखा।।
हाय.. रे..घर...का..चूल्हा...।
घर का चूल्हा जलता देखा।।
खेतों में हरियाली देखी
घर में आती खुशीयाली देखी
बच्चों की मुस्कान को देखा,
मन में कोलाहल सा देखा,
मंडी में जब भाव को देखा
श्रम सारा पानी सा देखा।
हाय.. रे..घर...का..चूल्हा...।
घर का चूल्हा जलता देखा।।
घर का चूल्हा जलता देखा
बर्तन-भाँडे बिकता देखा
हाथ का कंगना बिकता देखा,
बिकती इज़्ज़त बच्चों को देखा
खेते -खलियानों को बिकता देखा
हल-जोड़े को बिकता देखा।
हाय.. रे..घर...का..चूल्हा...।
घर का चूल्हा जलता देखा।।
बैल को जोता, खुद को जोता,
बच्चों और परिवार को जोता
ब्याज का बढ़ता बोझ को जोता
सरकार को जोता, फसल को जोता,
घरबार- परिवार को जोता
दरबारी-सरपंच को जोता,
हाय.. रे..घर...का..चूल्हा...।
घर का चूल्हा जलता देखा।।
मुर्दों की संसद को देखा
बन किसान मौज करते देखा,
घर का चूल्हा जलता देखा
बेच-बेच ऋण चुकता देखा
फिर किसान को मरता देखा
फांसी पर लटकता देखा।
हाय.. रे..घर...का..चूल्हा...।
घर का चूल्हा जलता देखा।।
शम्भु चौधरी, एफ.डी.-453/2,
साल्टलेक सिटी, कोलकाता-700106, मोबाइल: 0-9831082737.







7 comments:
शम्भू जी , सर्वप्रथम हिन्दी साहित्य मंच आगमन पर बहुत बहुत धन्यवाद । आपकी यह रचना हमारे देश की समस्या को इंगित कर रही है । जिस तरह से आपने रचना के माध्यम से चित्रण किया वह प्रशंसनीय है । शुभकामनाएं
समाज की समस्या को दर्शाती आप की यह रचना बेहद सटीक बनी है । प्रशंसनीय भाव लगे इस रचना में आपके । शब्द बहुत ही सरल होते हुए अमिट छाप छोड़ रहे हैं।
शम्भू जी , घर का चूल्हा सुन्दर रचना प्रस्तुत की आपने । पढ़कर आनंदित हुए साहित्य मंच का आभार आये कविओं को प्रस्तुत करने के लिए । बधाई
सरल शब्द , सुन्दर भाव के माध्यम से आपने कविता की पराकाष्ठा को अधिक प्रसांगिक कर दिया । समस्या या कठिनाओं को सुन्दर ढ़ग से सामने लाये आप । प्रवाहपूर्ण , प्रभावशाली रचना के लिए बधाई आपको ।
.. रचना के लिए बधाई ...
शम्भू जी इस रचना के लिए बधाई ।
भावपूर्ण रचना को आपने सरल शब्दों में ढ़ाल कर मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है । शुभकामनाएं
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