............दोस्तों एक कलमकार का अपनी कलम छोड़ कर किसी भी तरह का दूसरा हथियार थामना बस इस बात का परिचायक है कि अब पीडा बहुत गहराती जा रही है और उसे मिटाने के तमाम उपाय ख़त्म....हम करें तो क्या करें...हम लिख रहें हैं....लिखते ही जा रहे हैं....और उससे कुछ बदलता हुआ सा नहीं दिखाई पड़ता....और तब भी हमें कोई फर्क नहीं पड़ता तो हमारी संवेदना में अवश्य ही कहीं कोई कमी है... मगर जिसे वाकई दर्द हो रहा है....और कलम वाकई कुछ नहीं कर पा रही....तो उसे धिक्कारना तो और भी बड़ा पाप है....दोस्तों जिसके गम में हम शरीक नहीं हो सकते....और जिसके गम को हम समझना भी नहीं चाहते तो हमारी समझ पर मुझे वाकई हैरानी हो रही है....जूता तो क्या कोई बन्दूक भी उठा सकता है.....बस कलेजे में दम हो.....हमारे-आपके कलेजे में तो वो है नहीं....जिसके कलेजे में है.....उसे लताड़ना कहीं हमारी हीन भावना ही तो नहीं...........??????
.............दोस्तों हमारे आस-पास रोज-ब-रोज ऐसी-ऐसी बातें हो रही हैं और होती ही जा रही हैं,जिन्हें नज़रंदाज़ कर बार-बार हम अपने ही पैरों में कुल्हाडी मारते जा रहे हैं....और यह सब वो लोग अंजाम दे रहे हैं, जिन्हें अपने लिए हम अपना नुमाइंदा "नियुक्त" करते हैं....!!यह नुमाइंदा हमारे द्वारा नियुक्त होते ही सबसे पहला जो काम करता है,वो काम है हमारी अवहेलना....हमारा अपमान....हमारा शोषण....और हमारे प्रत्येक हित की उपेक्षा.....!!.........दोस्तों यहाँ तक भी हो तो ठीक है.....लेकिन यह वर्ग आज इतना धन-पिपासू....यौन-पिपासू.... जमीन-जायदाद-पिपासू.....इतना अहंकारी और गलीच हो चुका है कि अपने इन तीन सूत्री कार्यक्रम के लिए हर मिनट ये देश के साथ द्रोह तक कर डालता है....देश के हितों का सौदा कर डालता है....यह स्थिति दरअसल इतने खतरनाक स्तर तक पहुँच चुकी है कि इस वर्ग को अब किसी का भय ही नहीं रह गया है....पैसे और ताकत के मद में चूर यह वर्ग अब अपने आगे देश को भी बौना बनाए रखता है.....निजी क्षेत्र के किए गए कार्यों की भी यह ऐसी की तैसी किए दे रहा है.....निजी क्षेत्र ने इस देश की तरक्की में जो अमूल्य योगदान सिर्फ़ अपनी मेहनत-हुनर और अनुशासन के बूते दिया है.....यह स्वयम्भू वर्ग उसके श्रेय को भी ख़ुद ही बटोर लेना चाहता है....और यहाँ तक कि यह वर्ग अपने पद और रसूख के बूते उनका भी शोसन कर लेता है.....यानी कि इसकी दोहरी मार से कोई भी बचा हुआ नहीं है......!!
यह स्थिति वर्षों से जारी है...और ना सिर्फ़ जारी है....बल्कि आज तो यह घाव एक बहुत बड़ा नासूर बन चुका है...अब इसे अनदेखा करना हमारे और आप सबके लिए इतनी घातक है कि इसकी कल्पना तक आप नहीं कर सकते........आन्दोलन तो खैर आने वाले समय में होगा ही किंतु इस समय इस लोकतंत्र का महापर्व चल रहा है.....इस महापर्व का अवसान फिजूल में ही ना हो जाए....या कि यह एक प्रहसन ही ना बन जाए.....इसके लिए सबसे पहले हम जैसे पढ़े-लिखे लोगों को ही पहल करनी होगी.....क्योंकि मैं जानता हूँ कि सभ्य-सुसंस्कृत और पढ़े-लिखे माने जाने वाले सो कॉल्ड बड़े लोगों में अधिकाँश लोग अपने मत का प्रयोग तक नहीं करते....लम्बी लाईनों में लगना....धूप में सिकना....गंदे-संदे लोगों के साथ-साथ खड़े होना......घर की महिलाओं को इस गन्दी भीड़ का हिस्सा होते हुए ना देख पाना.....या किसी काल्पनिक हिंसा की आड़ लेकर चुनाव से बचना हमारा शगल है....!!
मज़ा यह कि हम ही सबसे वाचाल वर्ग भी हैं.....जो समाज में सबसे ज्यादा हल्ला तरह-तरह के मंचों से मचाते रहते हैं.....कम-से-कम अपने एक मत (वोट)का प्रयोग कर ख़ुद को इस निंदा-पुराण का वाजिब हक़ दिला सकते हैं....वरना तो हमें राजनीति की आलोचना करने का भी कोई हक़ नहीं हैं......
अगर वाकई मेरी बात सब लोगों तक पहुँच रही हो....तो इस अनाम से नागरिक की देश के समस्त लोगों से अपील है.....बल्कि प्रार्थना हैं कि इस चुनाव का वाजिब हिस्सा बनकर.....और कर्मठ लोगों को जीता कर हमारी संसद और विधान-सभाओं में पहुंचाएं.....और आगे से हम यह भी तय करें कि यह उम्मीदवार जीतने के पश्चात हमारे ही क्लच में रहे.....हमारे ही एक्सीलेटर बढ़ाने चले.......!!
................दोस्तों बहुत हो चुका....बल्कि बहुत ज्यादा ही हो चुका......अब भी अगर यही होता दीखता है तो फिर तमाम लोग सड़क पर आने को तैयार हो जाए.....अब तमाम "गंदे-संदे.....मवालियों....देश के हितों का सौदा करने वालों.....जनता की अवहेलना करने वालों.....और इस तरह की तमाम हरकतें करने वालों को...............।
5 comments:
... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति !!!!!
rajivji apka hukam sir mathe par bahut badiya likha hai abhar
Rajeev thepraji ..जूता तो क्या कोई बन्दूक भी उठा सकता है.....बस कलेजे में दम हो.....हमारे-आपके कलेजे में तो वो है नहीं....जिसके कलेजे में है.....उसे लताड़ना कहीं हमारी हीन भावना ही तो नहीं...........??????
क्यूँ आप समझते हैं निज को निर्बल और निसहाय भला
जो आग छुपी है हृदय में उसको थोड़ा सा और जला
निजता को बचाए रखने से मिलता कोई विस्तार नहीं
बीज बिना माटी मिले कभी ब्रक्छ हुआ क्या बताओ भला
अब हल्कापन है लोगों में ,उड़ते हैं हवा के झोंकों में
गुरुता के लिए ,गिरिता के लिए ,अपने अहम को और गला
भारत की संस्कृति का वचन ,परहित सा कोंई धर्म नहीं
शुचिता के सुमन शुभता के कंवल अपने जीवन कुछ और खिला
कल्याण दया ममता की लहर उठती है यदि तेरी छाती में
आनंदित जग जीवन के लिए ,इसमे थोड़ा सा शौर्य मिला
मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
सही बात है, अब नहीं चेते, तो कब चेतेंगे।
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