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रविवार, 12 अप्रैल 2009

गुरू सहाय भटनागर ‘बदनाम’ की एक गजल


याद करते है


तुम्हारी मद भरी आंखों को याद करते है,
तुम्हारे प्यार के वादों को याद करते हैं।


अकेले होते हैं फिर भी नहीं तन्हा होते,
तेरी उन मरमरी बाहों को याद करते हैं।


सहारा दे न सकी जिसको तेरी चश्मे करम,
अश्क में डूबी निगाहों को याद करते हैं।

7 comments:

Unknown ने कहा…

वाह वाह , बहुत खूब । सुन्दर गजल ।

daanish ने कहा…

achhi gazal hai....
lekin adhuri-si lagi..
pyaas abhi baaqi hai.....
---MUFLIS---

www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…

दैनिक हिंदुस्तान अख़बार में ब्लॉग वार्ता के अंतर्गत "डाकिया डाक लाया" ब्लॉग की चर्चा की गई है। रवीश कुमार जी ने इसे बेहद रोचक रूप में प्रस्तुत किया है. इसे मेरे ब्लॉग पर जाकर देखें !!

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

अरे वाह बहुत ही बेहतरीन बहुत सुंदर गजल मन मोह लिया आपकी गजल ने

बैसाखी की आप सभी लख लख बधाईयां जी

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

बेहद सुन्दर गजल ।

विनय ओझा 'स्नेहिल' ने कहा…

bahut khoob sahab.Likhte rahie.

विनय ओझा 'स्नेहिल' ने कहा…

bahut khoob sahab.Likhte rahie.