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सोमवार, 16 मार्च 2009

ऊँचे दृष्टिकोण (डॉ.रुपचन्द्र शास्त्री मयंक)

भूल चुके हैं आज सब, ऊंचे दृष्टिकोण,

दृष्टि तो अब खो गयी, शेष रह गया कोण।


शेष रह गया कोण, स्वार्थ में सब हैं अन्धे,


सब रखते यह चाह, मात्र ऊँचे हो धन्घे।


कह मयंक उपवन में, सिर्फ बबूल उगे हैं,


सभी पुरातन आदर्शो को, भूल चुके हैं।

4 comments:

Unknown ने कहा…

दृष्टि तो अब खो गयी,


शेष रह गया कोण।


शेष रह गया कोण,


स्वार्थ में सब हैं अन्धे,


बहुत सुन्दर रचना सर जी बधाई ।

बेनामी ने कहा…

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