जन्नत मुजको दिला दी जिसने दुनिया मैंवो हे मेरी माँदुनिया मैं जीने का हक दिया मुजको वो हे मेरी माँकचरे का डेर नदिया किनारा था मेरामुजको अपनी दुनिया ली वो हे मेरी माँरात का अंधेरा मेरी आखो का डरमेरे डर मेरी ताकत बनी वो हे मेरी माँमैं डर क़र ना सोया पूरी रात कभीमेरे लिए जागकर मुझे सुलाया वो हे मेरी माँकभी परेशानी मेरा सवब जो बनीमेरे रास्ते मैं फूल जिसने बिखेरे वो हे मेरी माँमेरे जुर्म की सजा खुद नेपाई मुजको अपने आचल मैं छुपा लिया वो हे मेरी माँमंदिर मस्जिद ना किसी की खबर मुजकोना गीता कुरान का ज्ञान मुजको फिर भी मुजको जहन्नुम से बचायवोवो हे मेरीमाँ कहते हे लोग माँ के कदमो मैं जन्नत होतीहे मैंने कहाजन्नत से भी जो उपर हे वो हे मेरी माँ
सोमवार, 6 फ़रवरी 2012
मेरी माँ ------(मुस्तकीम खान)
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2 comments:
जन्नत से भी जो उपर
हे वो हे मेरी माँ.........
This poem will be a milestone.
by
Hindi Sahitya
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