मंगलवार, 24 जनवरी 2012
सोमवार, 23 जनवरी 2012
मैं सपने देखता हूँ......ब्रजेश सिंह
हाँ मैं भी सपने देखता हूँ
कभी जागते हुए कभी सोते हुए
कभी पर्वतों से ऊंचे सपने
कभी गुलाब से हसीं सपने
कभी खुद को समझने के सपने
कभी खुद को जीतने के सपने
कभी खुद को हारने के सपने
मैं हर तरह के सपने देखता हूँ
मैं हर रंग हर आकार हर हर स्वाद के सपने देखता हूँ
कभी नीले कभी गुलाबी कभी
कभी तीखे कभी मीठे
कभी छोटे कभी बड़े
मैं हर तरह के सपने देखता हूँ
मेरे सपने बहूत जल्दी टूट टूटे हैं
और बिखर जाते हैं
मेरे सपने कांच की तरह होते हैं
एकदम साफ़ और पारदर्शी
दिख जाते है सबको मेरे सपने
मैं छिपाकर नहीं रख पाता इनको
इसलिए लोग खेलने लगते हैं इनसे
और टूट जाते हैं मेरे सपने खेल खेल में
मैं कोशिश करता हूँ इन्हें फिर से सजाने की
पर चुभ जाते हैं मेरे ही सपनो के महीन टूकड़े
और मैं दर्द से तड़पता रहता हूँ
मुझे अफ़सोस नहीं होता
जब ये सपने टूटते हैं
अब आदत हो गयी हैं इनके टूटने की
अब तो अधूरा सा लगता है
जब नहीं टूटता है कोई सपना
मन व्याकुल हो जाता है जब नहीं मिलता है सुनने को वो आवाज
जो पैदा होती है इनके टूटने पर
मैं हर वक़्त सपने देखता हूँ
मैं देखना चाहता हूँ उन चीजों को सपनो में
जिन्हें मैं हकीकत में चाह कर भी नहीं देख सकता
मैं सपनो में तितलियों को देखता हूँ
रंग बिरंगी, अनगिनत तितलियों को
पता नहीं कहाँ से आती हैं ये तितलियाँ
और फिर भरने लगती है रंग मेरी कोरी ज़िन्दगी में
पर अचानक! एक एक कर मरने लगती हैं ये तितलियाँ
और दब जाती हैं मेरी ज़िन्दगी इनकी लाशों तले
और टूट जाता है मेरा सपना रंगों का
ज़िन्दगी रह जाती है यूँ हीं श्वेत श्याम
मैं देखता हूँ सपनों में खुद को
एक निर्जन टापू पर
बेतहाशा दौड़ते हुए
कुछ ढूंढते हुए
मुझे दिखाई देता है सपने में
मेरा झून्झालाया सा चेहरा
मुझे दिखाई देती है एक प्यास मेरी आँखों में
तभी दिखता है दूर मुझे एक जहाज
और मैं चिल्लाता हूँ
खुश हो जाता हूँ की
आ रहा है एक जहाज
जो मुझे ले जाएगा मुझे अपने घर तक
लेकिन डूब जाता है ये जहाज
मेरे पास पहुँचने से पहले
और एक चीख के साथ टूट जाता है मेरा सपना
इसी तरह क्रम जारी है सपने सजाने का
और टूटने का
लेकिन मैं सजाता रहूँगा सपने
और पूरा भी करूंगा
क्यूंकि अभी तक किसी सपने में
दबी है मेरी ज़िन्दगी
उन तितलियों के लाशों तले
रंग भरना है ज़िन्दगी में
इसलिए मैं सपने देखूंगा
मैं देखूंगा सपने
और पूरा भी करूंगा
क्यूंकि मैं अबतक भटक रहा हूँ
उसी निर्जन टापू पर
एक जहाज के इंतज़ार में
मुझे पहुंचना है घर तक
मुझे करना है है सपना
शनिवार, 21 जनवरी 2012
खुदा मेरा दोस्त था... कैस जौनपुरी
खुदा मेरा दोस्त था...
जब भी कोई काम पड़ता था
लड़ता था झगड़ता था
खुदा मेरा दोस्त था...
जब भी परेशां होता था
मेरा काम बना देता था
खुदा मेरा दोस्त था...
जब से नमाज पढ़ने लगा हूँ
वो बड़ा आदमी हो गया है
उसका रुतबा बड़ा हो गया है
मुझसे दूर जा बैठा है
अब भी मेरी दुआएँ
होती हैं पूरी
लेकिन हो गई है
हम दोनों के बीच दूरी
वो बड़ा हो गया है
मैं छोटा हो गया हूँ
मैं सजदे में होता हूँ
वो रुतबे में होता है
पहले का दौर और था
जब मुश्किलों का ठौर था
बन आती थी जब जान पे
था पुकारता मैं तब उसे
अगर करे वो अनसुनी
था डांटता मैं तब उसे
कहता था जाओ खुश रहो
खुदा मेरा दोस्त था...
अब कि बात और है
वो हक बचा न दोस्ती
न कर सकूँ मैं जिद अभी
वो हो गया मकाम पे
जा बैठा असमान पे
थी कितनी हममें दोस्ती
है बात अब न वो बची
आ जाए गर वो दौर फिर
हो जाए फिर वो दोस्ती
आ जाए चाहे गर्दिशी
मिल जाए मेरी दोस्ती
मैं कह सकूँ उसे जरा
अगर मेरी वो ना सुने
मैं डांट दूँ उसे जरा
क्या फायदा नमाज से
कि दोस्त गया हाथ से
मैं सोचता हूँ छोड़ दूँ
ये रोजे और नमाज अब
ना जाने है कहाँ छुपा
वो मेरा दोस्त प्यारा अब
मैं खो गया हूँ भीड़ में
रिवायतों की भीड़ में
वो सुनता है अब भी मेरी
न चलती है मर्जी मेरी
वो देता है जो चाहिए
मगर मुझे जो चाहिए
वो ऐसी तो सूरत नहीं
अगर यूँ ही होता रहा
जन्नत मेरी ख्वाहिश नहीं
मुझे वो दोस्त चाहिए
मुझे वो दोस्त चाहिए
मुझे वो हक भी चाहिए
मुझे वो हक भी चाहिए
जो कह दूँ एक बार में
हो दोस्ती पुकार में
वो सुनले एक बार में
तू सुनले एक बार में
खुदा तू मेरा दोस्त था
खुदा तू मेरा दोस्त था....
]
शनिवार, 7 जनवरी 2012
आधे घंटे में प्यार..!
प्रिया का मन फिर काम में नहीं लगा। जैसे-तैसे खानापूर्ति करके वो ऑफिस से जल्दी निकल तो आई लेकिन इतनी जल्दी घर जाने का न ही उसका मन था और न ही आदत। काफी देर बस स्टॉप पर खड़े रहने के बाद प्रिया को एक खाली बस आते हुए दिखाई दी। हालांकि वो बस उसके घर की तरफ नहीं जा रही थी लेकिन प्रिया को लगा जैसे ये बस सिर्फ उसी के लिए आई है। प्रिया बस में चढ़ गई और खाली सीटों में से अपनी पसंदीदा बैक सीट पर खिड़की के पास बैठ गई। फैसल और प्रिया कॉलेज के दिनों में अक्सर इसी तरह खाली बसों में शहर के चक्कर लगाया करते थे। टिकट की कोई चिंता ही नहीं रहती थी क्योंकि बैग के कोने में स्टूडेंट बस पास पड़ा होता था।
फोन फिर वाइब्रेट हुआ। इस बार मैसेज संदीप का था। संदीप प्रिया का कलीग था। ऑफिस से दोनों अक्सर साथ आते-जाते थे। प्रिया जानती थी संदीप उसे पसंद करता है लेकिन प्रिया जानकर अनजान बने रहना ही ठीक समझती थी। फैसल के जाने के बा उसने अपने आपको एक दायरे में सीमित कर लिया था। मैसेज में संदीप ने लिखा था कि वो कहां है? प्रिया को याद आया कि जल्दबाज़ी में वो संदीप को बताकर आना भूल गई है। प्रिया ने जवाब दिया, “तबियत ठीक नहीं थी, जल्दी चली आई।” अब प्रिया ने फोन बैग में रख दिया। इस वक्त उसकाकिसी से बात करने का मन कर रहा था।
खिड़की से शाम की ठंडी हवा आ रही थी। प्रिया आंखे बंद कर सीट से टिक गई। प्रिया को अजीब सी बेचैनी महसूस हो रही थी। रह रह कर वह फैसल के “आठ घंटे के प्यार” के बारे में सोच रही थी। हालांकि वो काफी पहले अपने आपको समझा चुकी थी कि अब फैसल की ज़िंदगी में अब चाहे जो कुछ हो उसे फर्क नहीं पड़ेगा। अपने इस फैसले पर वो काफी खुश भी थी लेकिन फैसल का ये नया प्यार प्रिया को चैन नहीं लेने दे रहा था। प्रिया लगातार सोच रही थी कि फैसल उसके दो साल के प्यार को इस तरह कैसे भुला सकता है? क्या उसे एक बार भी प्रिया की याद नहीं आई? आठ घंटों का प्यार वाकई कोई प्यार हो सकता है?
सोचते सोचते प्रिया की आंखों से आंसू बह निकले। खुद को संभालते हुए वो अपने अपना रूमाल ढूंढने लगी। आदतन आज भी वो अपना रूमाल ऑफिस में ही भूल आई थी। प्रिया कुछ सोच ही रही थी कि इतने में किसीने एक सफेद रंग का जैंट्स रूमाल उसके आगे कर दिया। प्रिया ने नज़रे उठाकर देखा तो एक लड़का बेहद आकर्षक मुस्कान चेहरे पर लिए उसे देख रहा था। उसने रूमाल लेने से इनकार किया तो लड़ने ने “प्लीज़” कहकर उससे अपनी बात मनवा ली। प्रिया ने आंसू पोंछकर उसे “थैंक्स” करते हुए रूमाल वापस दे दिया। वो लड़का उसकी बगल वाली सीट पर ही बैठ गया। आधे घंटे की औपचारिक बातों के बाद दोनों ने एक दूसरे को अपना फोन नंबर दिया। लड़के का स्टॉप आया तो वो बाय करके चले गया। उसके जाते ही प्रिया ने तुरंत बैग से अपना फोन निकाला और फैसल को मैसेज किया, “आधे घंटे मेंप्यार हो सकता है क्या?”
(शबनम ख़ान)
रविवार, 1 जनवरी 2012
नववर्ष की शुभकामनायें
नया वर्ष आ गया; वर्ष 2012 आ गया; पुराना वर्ष 2011 चला गया। इस समय समाचारों में लोगों का उत्साह दिखाया जा रहा है। घर के कमरे में बैठे-बैठे हमें यहां उरई में खुशी में फोड़े जा रहे पटाखों का शोर सुनाई दे रहा है। लोगों की खुशी को कम नहीं करना चाहते, हमारे कम करने से होगी भी नहीं।
कई सवाल बहुत पहले से हमारे मन में नये वर्ष के आने पर, लोगों के अति-उत्साह को देखकर उठते थे कि इतनी खुशी, उल्लास किसलिए? पटाखों का फोड़ना किसलिए? रात-रात भर पार्टियों का आयोजन और हजारों-लाखों रुपयों की बर्बादी किसलिए? कहीं इस कारण से तो नहीं कि इस वर्ष हम आतंकवाद की चपेट में नहीं आये? कहीं इस कारण तो नहीं कि हम किसी दुर्घटना के शिकार नहीं हुए? कहीं इस कारण तो नहीं कि हमें पूरे वर्ष सम्पन्नता, सुख मिलता रहा?
इसके बाद भी नववर्ष के आने से यह एहसास हो रहा है कि बुरे दिन वर्ष 2011 के साथ चले गये हैं और नववर्ष अपने साथ बहुत कुछ नया लेकर ही आयेगा। देशवासियों को सुख-समृद्धि-सफलता-सुरक्षा आदि-आदि सब कुछ मिले। संसाधनों की उपलब्धता रहे, आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहे।
कामना यह भी है कि इस वर्ष में बच्चियां अजन्मी न रहें; कामना यह भी है कि महिलाओं को खौफ के साये में न जीना पड़े; कामना यह भी है कैरियर के दबाव में हमारे नौनिहालों को मौत को गले लगाने को मजबूर न होना पड़े; कामना यह भी कि कृषि प्रधान देश में किसानों को आत्महत्या करने जैसे कदम न उठाने पड़ें; कामना यह भी कि भ्रष्टाचारियों की कोई नई नस्ल पैदा न होने पाये और पुरानी नस्ल का विकास न होने पाये....कितना-कितना है कामना करने के लिए....नये वर्ष के साथ होने के लिए।
आइये चन्द लम्हों के आयोजन में हजारों-लाखों रुपयों की बर्बादी कर देने के साथ-साथ इस पर भी विचार करें। इस विचार के साथ ही आप सभी को नव वर्ष की शुभकामनायें...कामना है कि आप सभी को ये वर्ष 2012 सुख-सम्पदा-सुरक्षा-सम्पन्नता-सुकून से भरा मिले।