कुछ बातें हिन्दी व्याकरण की
अक्षर
“अक्षर” के नाम से ही जान पड़ता है कि जिसका क्षर (विभाजन) न हो सके उन्हे “अक्षर” कहा जाता है!
वर्ण
अक्षर किसी न किसी स्थान से बोले जाते हैं। जिन स्थानों से उनका उच्चारण होता है उनको वरण कहते हैं। इसीलिए इन्हें वर्ण भी कहा जाता है।
स्वर
जो स्वयंभू बोले जाते हैं उनको स्वर कहा जाता है। हिन्दी व्याकरण में इनकी संख्या २३ मानी गई है।
हृस्व दीर्घ प्लुत
अ आ अ ३
इ ई इ ३
उ ऊ उ ३
ऋ Î ऋ ३
Æ ॡ Æ ३
- ए ए ३
- ऐ ऐ ३
- ओ ओ ३
- औ औ ३
कृपया ध्यान रखें :-
हृस्व में एक मात्रा अर्थात् सामान्य समय लगता है।
दीर्घ में दो मात्रा अर्थात् सामान्य से दो गुना समय लगता है
और प्लुत में तीन मात्रा अर्थात् सामान्य से तीन गुना समय लगता है।
व्यञ्जन
जो अक्षर स्वर की सहायता के बिना नहीं बोले जा सकते हो वे व्यञ्जन कहलाते हैं। इनकी संख्या ३३ है!
कवर्ग क ख ग घ ड.
चवर्ग च छ ज झ ञ
टवर्ग ट ठ ड ढ ण
तवर्ग त थ द ध न
पवर्ग प फ ब भ म
अन्तस्थ य र ल व
ऊष्म श ष स ह
संयुक्ताक्षर
संयुक्ताक्षर वह होते हैं जो दो या उससे अधिक अक्षरों के संयोग से बनते हैं। इनका वर्णन यहाँ पर करना मैं अप्रासंगिक समझता हूँ।
अयोगवाह
जो स्वर के योग को वहन नहीं करते हैं उन्हें अयोगवाह कहते हैं। अर्थात् ये सदैव स्वर के पीछे चलते हैं। इनमें स्वर पहले लगता है जबकि व्यञ्जन में स्वर बाद में आता है। तभी वे सही बोले जा सकते हैं।
ये हैं-
: विसर्ग
जिह्वामूलीय
उपध्यमानीय
अनुस्वार
¤ हृस्व
¦ दीर्घ
अनुनासिक
महाअनुनासिक
मुख के भीतर अक्षरों की ध्वनियों का स्थान
अक्षर स्थान
अवर्ग, कवर्ग, ह, विसर्ग कण्ठ
इवर्ग, चवर्ग, य, श तालु
उवर्ग, पवर्ग, उपध्यमानीय ओष्ठ
ऋवर्ग, टवर्ग, ष मूर्धा
ॡवर्ग, तवर्ग, ल, स दन्त्य
ए, ऐ कण्ठतालु
ओ, औ कण्ठओष्ठ
द दन्तओष्ठ
अनुस्वार, यम नासिका
4 comments:
क्या यह पोस्ट हिन्दी व्याकरण की दृष्टि से उपयोगी होगी?
निश्चित रूप से .हिंदी व्याकरण को सरल रूप में प्रस्तुत किया है आपने .आभार
हिन्दी व्याकरण बहुत ही व्यवस्थित है, आभार इस पोस्ट के लिये।
bilkul bahut sey log hindi sahi tarikey sey padhna chahtey hai ,unkey liye sahayak hongey
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