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गुरुवार, 29 सितंबर 2011

किसलय सी कोमल काया {गीत} सन्तोष कुमार "प्यासा"


क्यूँ विकल हुआ हिय मेरा
क्यूँ लगते सब दिन फीके
हर छिन कैसी टीस उठे
अब साथ जागूं रजनी के
जब से वह किसलय सी
कोमल काया मेरे मन में छाई
संयोग कहूँ या प्रारब्ध इसे मैं
वो पावन पेम मिलन था इक पल का
मिटीजन्मो की तृष्णा सारी
इक स्वप्न सजा सजल सा
इस सुने से जीवन में मेरे
मचली प्रेम तरुणाई
जब से वह किसलय सी
कोमल काया मेरे मन में छाई
न परिचित मै नाम से उसके
न देश ही उसका ज्ञात है
पर मै मिलता हर दिन उससे
वोतो मनोरम गुलाबी प्रातः  है
निखरा तन-मन मेरा बसंत बहार जैसे
ये कैसी चली पुरवाई 
जब से वह किसलय सी
कोमल काया मेरे मन में छाई

4 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सुन्दर भाव लिए हुए सुन्दर रचना

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अहा, आनन्दमयी अभिव्यक्ति।

Onkar ने कहा…

khoobsurat rachna

किलर झपाटा ने कहा…

ऐसी रचना आपको नहीं लिखना चाहिए थी। बहुत ज़्यादा अच्छी है भाई। सुन्दर मनोभाव।