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शनिवार, 20 अगस्त 2011

समझ लेने दो.............राजीव कुमार

अब तो
रह गया है
मेरी यादों में ही बसकर
मिटटी की दीवारों वाला
मेरा खपरैल घर
जिसके आँगन में सुबह-सबेरे
धूप उतर आती थी,
आहिस्ता-आहिस्ता,
घर के कोने-कोने में
पालतू बिल्ली की तरह
दादी मां के पीछे-पीछे
घूम आती थी,
और
शाम होते ही
दुबक जाती थी
घर के पिछवाड़े
चुपके से.

झांकने लगते थे
आसमान से
जुगनुओं की तरह
टिमटिमाते तारे,
करते थे आँख-मिचौली
जलती लालटेनों से.

आँगन में पड़ी
ढीली सी खाट पर
सोया करता था मैं
दादी के साथ.

पर,आज
वहां खड़ा है
एक आलीशान मकान,
बच्चों की मर्जी का
बनकर निशान.
उसके भीतर है
बाईक,कार,
सुख-सुविधा का अम्बार है.

नहीं है तो बस
उस मिटटी की महक
जिससे बनी थी दीवारें,
जिसमें रचा-बसा था
कई-कई हाथों का स्पर्श,
अपनों का प्यार,
नहीं है वो खाट
जिसपर
चैन से सोया करता था
मेरा बचपन.

एकबार फिर
जी लेने दो मुझे
उन यादों के साये में,
समझ लेने दो
अपनेपन का सार.

9 comments:

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

गहरी संवेदना से उपजी कविता !
आभार !

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

स्मृतियों की गहन स्थिति।

एक स्वतन्त्र नागरिक ने कहा…

सचिन को भारत रत्न क्यों?
http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/

एक स्वतन्त्र नागरिक ने कहा…

अच्छी रचना.
यदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक विचार हेतु पढ़ें
अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html

anita agarwal ने कहा…

bahut sunder or komal eksaas se saji ek khubsurat rachna...

Ravi Rajbhar ने कहा…

Bahut hi bhawporn prastuti...

एक स्वतन्त्र नागरिक ने कहा…

बहुत अच्छी बात कही है आपने.
यदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html

c b singh ने कहा…

बहुत खूब कहा है |

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