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गुरुवार, 11 अगस्त 2011

स्नेह सुरभि {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"


अलमस्त हो जाय प्रभा की मधुर बेला
छेड़ दो वो प्रीत-गीत फिर से विहाग
मिटें  निज मन के मनभेद सभी
देश-काल, अन्तराल का भेद मिटाने को
हे सरित सुनाओ राग
अज्ञान तिमिर सब हिय से मिट जाय
बस संचारित हो तो स्नेह सौहार्द और मोह
मधुप की मधुर गुन-गुन सुनकर
कटे जन्म-जन्मातर के  विछोह
जगे अन्तरम  में इक ललक ऐसी
विजय-मार्ग रोके न भय, कभी बन कारा
सुकर्म कर रचे नवयुग ऐसा
स्नेह सुरभि से सुवासित हो जग-सारा  

4 comments:

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

vaah kyaa andaaz hai mubark ho ..akhtar khan akela kota rajsthan

prerna argal ने कहा…

BAHUT BADIYAA PRASTUTI.BADHAAI AAPKO.

ASHOK BAJAJ ने कहा…

अच्छी व सुदर भाव भरी कविता .

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

भविष्य की सुन्दर परिकल्पना, भगवान करे सच हो जाये।