मैं खुद प्यासा रहता हूँ पर
जन-जन कि प्यास बुझाता हूँ
बालश्रम का मतलब क्या है
समझ नहीं मैं पाता हूँ|
भूखी अम्मा, भूखी दादी
भूखा मैं भी रहता हूँ
पानी बेचूं,प्यास बुझाऊं
शाम को रोटी खाता हूँ|
उनसे तो मैं ही अच्छा हूँ
जो भिक्षा माँगा करते हैं
नहीं गया विद्यालय तो क्या
मेहनत कि रोटी खाता हूँ|
पढ़ लिख कर बन जाऊं नेता
झूठे वादे दे लूँ धोखा
अच्छा इससे अनपढ़ रहना
मानव बनना होगा चोखा|
मानवता कि राह चलूँगा
खुशियों के दीप जलाऊंगा
प्यासा खुद रह जाऊँगा,पर
जन जन कि प्यास बुझाऊंगा|
रविवार, 15 मई 2011
बाल श्रम.................डॉ कीर्तिवर्धन
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2 comments:
बहुत सुंदर रचना
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
भारत के यथार्त का एक सही चित्रण,...
भारत में 18 करोड़ ऐसे लोग जिनके रहनें का कोई ठिकाना नहीं है, और 18 करोँड़ झोपड़पट्टी में रहते हैं।
और दूसरी ओर यहाँ अरबपतियों की तादात सबसे तेजी से बड़ रही है, जो कि मेहनत करनें वालों की मेहनत से पैदा हुई हर चीज को उनसे लूट लेते हैं....
क्या इस मानवता को पतित करनें वाली सच्चाई को बदलनें के लिये हमें कुछ करना नहीं चहिये..
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